शरद पवार की ‘घड़ी’ अब ठहर गई, चाचा पर भतीजा अजीत पवार क्यों पड़ा भारी ?
Sharad Pawar Vs Ajit Pawar: 1999 का वो साल था जब कांग्रेस के कद्दावर नेता शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर पार्टी को अलविदा कह दिया था. एक अलग पार्टी का गठन किया जिसे नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी नाम दिया. अब अगर पार्टी के नाम को देखें तो ऐतराज उन्हें सिर्फ सोनिया गांधी से था कांग्रेस पार्टी से नहीं. अगर कांग्रेस से ऐतराज रहा होता तो 2019 में वो महाविकास अघाड़ी का हिस्सा नहीं बनते. लेकिन यहां हम बात करेंगे कि अब शरद पवार और एनसीपी का नाता क्या है.
शरद पवार के लिए भारी दिन
6 फरवरी 2024 को चुनाव आयोग के फैसले के बाद शरद पवार का एनसीपी से कोई नाता नहीं है. जिस घड़ी की सुइयों में वो अपने लिए भविष्य का रास्ता देखते थे. वो अब उनके लिए ठहर चुकी है.भतीजा अजित पवार ना ना सिर्फ सत्ता की लड़ाई में चाचा शरद पवार पर भारी पड़ा. बल्कि चुनाव आयोग के फैसले के बाद शरद पवार को उम्र के इस पड़ाव पर नई उम्मीदों के साथ नई पार्टी बनाने का विकल्प शेष है.
बड़े- छोटे पवार क्यों हुए अलग
सवाल यह कि जिस शरद पवार को राजनीति का चाणक्य माना जाता है. वो कैसे अपने भतीजे से सियासी और एक तरह नियम-कानून की लड़ाई हार गए. क्या शरद पवार का बेटी प्रेम ही उन पर भारी पड़ा. राजनीति के जानकार बताते हैं कि यह बात सच है कि सुप्रिया सुले, शरद पवार की बेटी हैं और वो सियासत का हिस्सा भी हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में अजित पवार की भूमिका अहम थी. समय बीतने के साथ अजित पवार को आभास होने लगा था कि कहीं न कहीं उनके हक को मारा जा रहा है. उन्हें ऐसा लगने लगा था कि शरद पवार,सुप्रिया सुले को पार्टी की कमान देने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी सूरत में कोई भी नेता जिसका जमीनी आधार हो उसे कैसे बर्दाश्त कर सकता है.
2019 का वो खास दिन
2019 का वो दिन याद होगा जब तड़के तड़के महाराष्ट्र के राजभवन में दो चेहरे शपथ ले रहे थे जिसमें एक का नाम अजित पवार था. अजित पवार, देवेंद्र फणडवीस के डिप्टी बन चुके थे.वो नजारा सियासी जानकारों के सिर में हलचल मचाने के लिए काफी था तो शरद पवार के दिल और दिमाग की स्थिति क्या रही होगी आप आसानी से समझ सकते हैं.
2019 में अजित पवार ने एक तरफ से शरद पवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. राजनीति के धुरंधर शरद पवार ने अपने घोड़े दौड़ाए और एक ऐसी व्यवस्था का रास्ता प्रशस्त किया जिसे सुन और देख हर कोई हैरान था. एक खेमें में कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना का आना किसी राजनीतिक चमत्कार से कम नहीं था.लेकिन सियासत चमत्कारों के साथ संभावनओं का भी खेल है. संभावना और चमत्कार के बीच अजित पवार ने ऐसा खेल रचा कि चाचा शरद पवार के सामने अब मुश्किलों का पहाड़ चुनौती दे रहा है.
6 महीने की सुनवाई, 141 पेज का फैसला
चुनाव आयोग में 6 महीने तक एनसीपी विवाद पर सुनवाई हुई. 10 सुनवाई के बाद आयोग ने अजित पवार के पक्ष में फैसला सुनाया. आयोग ने माना कि एनसीपी और चुनाव चिन्ह पर अजित पवार का दावा वैधानिक है. चुनाव आयोग ने 141 पेज के फैसले में कहा कि हमने तीन कसौटी, पार्टी के संविधान के लक्ष्य और उद्देश्यों का परीक्षण, पार्टी संविधान का परीक्षण के बहुमत के टेस्ट को निर्णय का आधार बनाया. इन तीनों कसौटियों पर अजित पवार खरे उतरे. लिहाजा पार्टी और चुनाव चिन्ह पर उनका दावा न्यायसंगत है.
शरद पवार के सामने अब क्या है रास्ता
शरद पवार के बारे में कहा जाता है कि वो किसी हारी हुई बाजी को पलटने की क्षमता रखते हैं. यह बात तो सच है कि चुनाव आयोग की नजर में एनसीपी अब उनकी नहीं है जिसका गठन साल 1999 में उन्होंने किया था. आयोग के फैसले के खिलाफ उनके पास सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प है. इसके बारे में उनकी बेटी सुप्रिया सुले पहले ही बयान जारी कर चुकी हैं.