फिल्म हिट कराने का अब कोई सेट फार्मूला नहीं, दर्शकों को पसंद आया अलग-अलग कंटेंट

 

Content Of Bollywood Films : बॉलीवुड विश्व का दूसरा सबसे बड़ा फिल्म निर्माण उद्योग है। मुख्य तौर पर फार्मूला और मसाला फिल्मों से अपनी पहचान और पैसा बनाने वाला यह उद्योग, हमेशा से ऐसी फिल्मे भी बनाता आया है जो मुख्यधारा से हटकर होती हैं, और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होती आई हैं। चाहे वह चेतन आनंद की नीचा नगर हो या विमल रॉय की दो बीघा जमीन। पैसे कमाने के मामले में भी ऐसी फिल्में पीछे नहीं रही। ये और बात की है कभी उन्हें समानान्तर सिनेमा का नाम दिया गया तो कभी नया सिनेमा का और कभी कला फिल्म भी कहा गया।

नए-नए एक्सपेरिमेंट करता गया

बदलते हुए समय और दर्शक के साथ बॉलीवुड फिल्म उद्योग भी अपने रूप रंग में परिवर्तन लाता गया और नए-नए एक्सपेरिमेंट करता गया। गुलशन कुमार की संगीतमय क्विकी फिल्मों और सूरज बड़जात्या के पारिवारिक संगीतमय फिल्मों के दौर में रामगोपाल वर्मा एक तरफ रंगीला और दूसरी तरफ सत्या जैसी फिल्में लेकर आए। इन फिल्मों ने एक अलग ही दुनिया रची और इन फिल्मों में रामगोपाल वर्मा के साथ काम करने वाले निर्देशक हों या लेखक मसलन अनुराग कश्यप और श्रीराम राघवन उनसे स्टोरी टेलिंग का ककहरा सीख कर निकले तो उन्होंने अपने लिए एक अलग दर्शक वर्ग तैयार किया जो आज भी उनकी फिल्मों पर आह-वाह करते नहीं थकते। स्त्री -विमर्श और देह-विमर्श को लेकर उन्होंने एक पूरी पीढ़ी के नजरिये को दिशा दी।

रिश्ते एक नए अर्बन अंदाज में

ऐसा नहीं कि इस दौरान बड़े बजट की फार्मूला फिल्में नहीं बन रही थीं और हिट नहीं हो रही थीं। सारे बड़े सितारों की मसाला और फार्मूला आधारित फिल्में भी रिलीज हो रही थीं और हिट भी हो रही थीं। लेकिन इसके साथ ही ये हिंदी फिल्में सामाजिक बदलावों को अपने कथानक में जगह देती जा रही थीं। मां-बेटे के रिश्ते को एक नए अर्बन अंदाज में भी परोसने के साथ-साथ एलजीबीटीक्यू को भी संजीदगी के साथ दिखाने लगी थीं। और फिर धीरे-धीरे मसाला फिल्में भी यथार्थवाद और सामाजिक रूप से प्रासंगिक विषयों के तत्वों को शामिल करने लगीं। रॉकी और रानी की प्रेम कहानी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

फिल्मकारों को भी दो गुटों में बांट दिया

विचारों और शैलियों का यह परस्पर संबंध अच्छे बदलाव का संकेत है। छोटे बजट की फिल्में जैसे बारहवीं फेल भी ना केवल बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही हैं बल्कि सराहना भी बटोर रही हैं। हालांकि दूसरी और ऐसी फिल्में भी बन रही हैं जो बड़े बजट की बड़े सितारों वाली हैं, बहुत कमाई कर रही हैं लेकिन साथ ही अपने स्टोरी लाइन की वजह से विवादों में घिरी रहती हैं और सोशल मिडिया पर बहस का कारण बानी हुई हैं। रणबीर कपूर अभिनीत हालिया रिलीज फिल्म एनिमल एक ऐसी फिल्म है जिसने ना केवल दर्शकों बल्कि फिल्मकारों को भी दो गुटों में बांट दिया। वजह है इसके संवाद और कुछ दृश्य जो काफी रिग्रेसिव और स्त्री-विरोधी कहे जा रहे हैं।

आज के दौर में बस कंटेंट इज किंग

जाहिर है वर्तमान में हिंदी फिल्म उद्योग में ऐसी फिल्में बन रही हैं जिन्होंने अपने लिए एक खास दर्शक वर्ग तैयार कर लिया है। यही नहीं दर्शक भी अब केवल बंधे बंधाये फार्मूला फिल्मों को देखकर ही संतुष्ट नहीं है बल्कि उसे अब हर तरह की फिल्मों का स्वाद चाहिए। यदि वह स्त्री, बधाई हो या बारहवीं फेल देखकर नायक के साथ हमनवां होना चाहता है तो एनिमल देखकर अपनी फंतासी भी पूरी करना चाहता है। कहा जा सकता है की हिंदी फिल्म उद्योग जिस दौर से गुजर रहा है, उस दौर में कोई इकलौता फार्मूला या मसाला नहीं जिसके बारे में कहा जाये कि वह फिल्म को हिट करा देगा। आज के दौर में तो बस कंटेंट इज किंग का फार्मूला चल रहा है।