राम जी करेंगे बेड़ा पार! चुनावी दहलीज पर खड़ी BJP को राम मंदिर से कितना मिलेगा फायदा

 

Ram Mandir : जनता पार्टी (भाजपा) एक बार फिर राम के भरोसे है। 2024 का चुनाव में उसे पूरा भरोसा है कि मंदिर के रास्ते ही सत्ता तक जाने का गलियारा तैयार होगा। वह आगे बढ़ रही है। एक राजनीतिक पार्टी के रूप में 1980 में सामने आने वाली भाजपा के लिए अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हमेशा उसके चुनावी एजेंडे में रहा। एक ऐसा दौर भी आया जब केवल राम मंदिर ही एक बड़ा मुद्दा उसके पास रह गया। हालांकि केवल राम मंदिर के सहारे सत्ता तक पहुंचने की उसकी कोशिशों को झटका भी लगा।

राम मंदिर के लिए हिंदू महासभा का 1949 का प्रस्ताव
केंद्र में 1996,1998 और 1999 में उसकी गठबंधन सरकार बनी लेकिन अटल बिहार वाजपेयी की उदारवादी छवि हिंदुत्व के उस मुखर चेहरे को आगे और उसे चुनावी फायदा नहीं दिला पाई। भाजपा की राजनीतिक विचारधारा संघ और हिंदू महासभा से होते हुए विकसित हुई है। यह हिंदू महासभा ही था जिसने 1949 को एक प्रस्ताव पारित करते हुए कहा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए।

विहिप ने बढ़ाई सक्रियता
फिर विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दी। इसने जगह-जगह राम मंदिर के लिए चर्चे, कार्यक्रम एवं सभाएं करनी शुरू की। राम मंदिर के लिए हिंदू समाज में अलख जलता रहा। राम मंदिर आंदोलन के लिए 1984 एक अहम कड़ी साबित हुआ। इस साल धर्म संसद का आयोजन हुआ। इसी धर्म संसद में विधिवत रूप से संकल्प जताया गया कि हिंदुओं के तीन सबसे महत्वपूर्ण आस्था के केंद्रों अयोध्या, मथुरा और काशी के लिए आंदोनल एवं मुहिम चलानी चाहिए। लेकिन इसी साल के आम चुनावों में भाजपा को महज दो सीटें मिलीं इसके बाद संघ, विहिप, भाजपा के कार्यकर्ताओं ने तय किया कि चुनावी राजनीति में राम मंदिर आंदोलन को प्रमुखता से लेकर आगे बढ़ना होगा।

राम मंदिर से निकलेगा रास्ता
हिंदू समाज और हिंदी राज्यों के नब्ज पर भाजपा ने हाथ तो रख दी थी लेकिन इसे एक प्रमुख चुनावी मुद्दे के रूप में प्रखरता एवं मजबूती के साथ आगे बढ़ने का संकल्प 1989 के लोकसभा चुनाव में जताया गया। इस चुनाव में राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाने का भाजपा का फैसला सही साबित हुआ। 1984 में लोकसभा की मात्र दो सीटें जीतने वाली भगवा पार्टी 85 सीटें जीत गई। इस चुनावी विजय ने उसके हौसले में कई गुना इजाफा किया। भाजपा को यह अहसास हो गया कि राम नाम के धागे को पकड़कर वह हिंदी पट्टी में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है और सत्ता में पहुंचने का रास्ता यही मंदिर से ही होकर गुजरता है।

आडवाणी की रथ यात्रा
1990 का दौर का दशक राजनीतिक उथल-पुथल और भाजपा की मजबूती और कमजोरी दोनों का रहा। एक तरफ देश में कमंडल की राजनीति जोर पकड़ रही थी तो दूसरी ओर भाजपा के लिए राम मंदिर के साथ कमंडल की अपनी राजनीति के लिए जगह बनानी थी। भाजपा के लिए यह दौर मुश्किल भरा था। भाजपा ने मंथन के बाद राम मंदिर के लिए एक बड़ा प्लान बनाया। हिंदुओं को राम मंदिर के प्रति जागरूक और उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए रथ यात्रा निकाली। रथ पर लालकृष्ण आडवाणी सवार हुए और उनके सारथी बने आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। सोमनाथ से शुरू हुई रथ यात्रा मध्य प्रदेश, यूपी होते हुए जब बिहार पहुंची तो इस रथ यात्रा पर रोक लग गई। बिहार के तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया।

फिर राम के भरोसे भाजपा
बहरहाल, राम मंदिर आंदोलन के लिए रथ यात्रा माहौल बना चुकी थी। हिंदू समाज अपने आराध्य के मंदिर के लिए व्याकुल हो उठा। 1992 में कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। यूपी की कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गई।  इसके बाद भाजपा ने राम मंदिर मुद्दे को जिंदा तो रखा लेकिन वह आक्रामक तरीके से इस पर आगे नहीं बढ़ी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी राम मंदिर भाजपा के संकल्प पत्र में तो था लेकिन वह जिताऊ चुनाव मुद्दा नहीं था। 2019 के चुनाव के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हुआ और आज उसने साकार रूप ले लिया। भाजपा जानती है कि 2024 का चुनावी जीत का रास्ता भी राम मंदिर से होकर गुजरेगा।