Ram Mandir Pran Pratistha: राम सबके हैं, कोई भेद संभव नहीं

 

Ram Mandir: ‘रामहि केवल प्रेम पियारा, जानि लेहु जे जाननिहारा।’ (राम को सिर्फ प्रेम ही प्यारा है, कोई जानना चाहे तो जान ले) तुलसीदास का यह उद्घोष इतना व्यापक है कि वे एक दूसरी चौपाई में कहते हैं, ‘केहि सन करुऊं विरोध’ (किसका विरोध करूं) क्योंकि ‘सिया राम मय सब जग जानी’ (सारा संसार सिया राम मय है)। प्रेम, करुणा, उदारता, शील, सत्य, मर्यादा के पर्याय राम प्राचीन काल से सभी पंथों, संप्रदायों और लोक में बेहद प्रचलित रहे हैं। वे वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति के कथा नायक हैं तो बौद्ध और जैन कथाओं में भी अलग-अलग रूपों और संदर्भों में हैं। वे सगुण और निर्गुण सभी के लिए पूज्य हैं।

सबके राम

राम तुलसी के हैं तो, कबीर, रैदास, नानक, रहीम, रसखान के भी उतने ही हैं। आधुनिक दौर में वे महात्मा गांधी के लिए भगवान ही नहीं, सत्य और करुणा का दूसरा नाम रहे हैं, इस कदर कि हत्यारे की गोली लगी तो उनके मुंह से ‘हे राम!’ ही निकला, तो उर्दू के मशहूर शायर इकबाल के लिए ‘इमाम-ए-हिंद’ हैं।यह इससे भी समझा जा सकता है कि राम कथा का विस्तार धुर पूरब इंडोनेशिया, मलेशिया से लेकर ब्लूचिस्तान और काबूल तक फैला हुआ मिलता है। लगभग एक हजार से ज्यादा रामायण हैं। आधुनिक दौर में हिंदी में तुलसी का रामचरित मानस प्रचलित है तो बांग्ला में चंडीदास, तमिल में कंबनदास के रामयाण हैं।

राम कथा के अनेकों रूप

कहा तो यह जाता है कि रामलीला की शुरुआत तुलसीदास ने की, लेकिन लोक और स्त्री गीतों में राम कथा न जाने कितने रूपों में और कब से है, इसलिए रामलीला का विस्तार भी बताता है, वह उनसे पहले से प्रचलित है। राम होली, दिवाली की लोकगीतों में हैं। राम को स्त्रीगीतों में गालियों से भी नवाजा जाता है। रामलीला इंडोनेशिया, मलेशिया की अलग है तो अपने देश में भी बांग्ला रामलीला, तमिल रामलीला, मलयालम रामलीला, कन्नड़ रामलीला, तेलुगु रामलीला, केरल में मुस्लिम रामलीला भी है। उसके न जाने कितने रूप प्रचलित हैं।लेकिन सबमें राम मर्यादा पुरुषोत्तम ही हैं।

राम मतलब ‘त्याग’

राम राज्य में सभी सुखी थे, बाघ-बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे, किसी पर कोई बंदिश नहीं थी। खुद राम की नींदा करने करने पर भी नहीं। सीता के वनवास का संदर्भ यही तो बताता है कि एक मामूली आदमी की कही बात पर भी अपने सबसे प्रिय को त्याग सकते थे लेकिन आरोप लगाने वाले को कुछ नहीं कहते। यह मर्यादा आज लोकतंत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। राम नीति पर तुलसी की प्रसिद्ध चौपाई राम राज्य के मर्म की बात करती है, ‘मणि माणक महंगो कियो, सस्तो जल, तृण, नाज/तुलसी ऐसे जानिए, राम गरीबनवाज।’ यानी राम राज्य में विलासित के सामान महंगे थे मगर जरूरत की चीजें सस्ती और सुलभ थीं।

सत्य का दूसरा नाम राम

राम उदात्त नायक हैं। उन्होंने गौतम ऋषि की पत्नी को कलंक-मुक्त किया था। इस तरह तब समाज में स्त्री को कलंकित मानने वाली प्रथा को उलट दिया था। उन्होंने निषाद राज, सबरी, तमाम उपेक्षित जातियों-जनजातियों को सम्मान दिया था। भवभूति के ‘उत्तररामचरितम्’ में राम सीता के वनवास और उनके धरती में समा जाने के बाद गहरे पछतावे में अयोध्या नहीं लौट पाते, सरयु में जल-समाधि ले लेते हैं। राम हर सत्य को स्वीकार करते हैं।

शील, करुणा ही राम नाम

महात्मा गांधी राम कथा में तुलसीदास की उस चौपाई को अपने सत्याग्रह की प्रेरणा बताते थे, जो रावण से युद्ध के दौरान की है। रावण को रथ पर सवार और राम को पैदल देखकर विभिषण व्याकुल हो उठते हैं तो राम कहते हैं, ‘जेहि जय होइ सो स्यंदन आना’ (जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा है), सत्य, शील, करुणा, धर्म, समता उसके गुण हैं। इसलिए राम को इन गुणों से अलग नहीं किया जा सकता। न उनके नाम पर कोई भेद या स्वार्थपूर्ति की आकांक्षा की जा सकती है।