बात बात पर इस्तीफा मांगने वाली ममता बनर्जी चुप क्यों ?

 

टीवी स्क्रीन पर ममता बनर्जी को जिस अंदाज में चलते हुए देख रहे हैं.. उसी अंदाज में बंगाल की सड़कों पर 31 साल पहले भी चला करती थीं। फर्क सिर्फ इतना है कि तब वो सरकार में नहीं थीं। तब वो जोर, जुल्म, महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सत्ताधारी दल को कोसती थीं। जिस तस्वीर को हम दिखा रहे हैं वो 9 अगस्त के बाद की है, आरजी कर मेडिकल कांड के बाद जब पूरा बंगाल उबल पड़ा तो वो सड़क पर उतरीं। वैसे आपको यह थोड़ा अजीब सा लग सकता है कि वो शख्सियत जो सूबे की सीएम हो, खुद ही गृह मंत्री हो, खुद ही स्वास्थ्य मंत्री हो क्या उसे सड़क पर इस तरह से उतरना चाहिए। वो खुद अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठा रही थीं। बात बात पर इस्तीफे की बात करने वाली ममता इस्तीफा क्यों नहीं देतीं। मां, माटी और मानूष की बात करने वाली ममता को सड़क पर उतरे छात्रों का प्रदर्शन प्रायोजित लगता है। उन्हें छात्रों के प्रदर्शन में सियासत नजर आती है। हालांकि वो भूल जाती हैं कि 31 साल पहले उस संघर्ष को जब वो वाम दल की चूलें हिलाने के लिए आए दिन धरना प्रदर्शन करती रहती थीं। उन्होंने एक बयान भी दिया कि प्रदर्शन उन्होंने भी किया है लेकिन वो राजनीतिक नहीं था। यानी कि सियासत का हिस्सा होने के बाद भी वो अपने को गैर सियासी मानती हैं। ज्योति बसू और बुद्धदेव भट्टाचार्ट के खिलाफ प्रदर्शन को वो अपना नैतिक कर्तव्य मानती थीं। लेकिन जब दूसरे विपक्षी दल कोलकाता की सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करते हैं तो उसमें उन्हें लगता है कि बंगाल में वो लाशों को बिछाना चाहते हैं।

छात्रों के संगठन ने 27 अगस्त को जब नबन्ना मार्च का ऐलान कर आगे बढ़ने लगे तो उन्हें रोकने के लिए दिल्ली वाला नुस्खा अपनाया। हावड़ा ब्रिज पर लोहे की दीवार खडी कर दी। छात्रों के ऊपर पानी की बौछार और टीयर गैस का इस्तेमाल किया। मकसद सिर्फ इतना सा कि ये छात्र ट्रेनी डॉक्टर मर्डर केस में नबन्ना तक ना जा सके। जबकि यही ममता बनर्जी 1993 में रायटर्स बिल्डिंग में सीएम के दफ्तर पर धरने पर बैठीं। जब कोलकाता की पुलिस ने उन्हें वहां से हटाकर बाहर कर दिया तो कसम खा ली कि अब तो रॉयटर्स तभी जाएंगी जब सत्ता हाथ आएगी। करीब 18 साल बाद साल 2011 में बंगाल की माटी और मानूष और मां यानी महिला शक्ति ने वो मौका दिया और बंगाल की गद्दी पर काबिज हो नबन्ना से सरकार चलाने लगीं। बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार का सचिवालय नबन्ना भवन में है। गद्दी संभालने से लेकर करीब 13 वर्षों में दुष्कर्म के कई वीभत्स मामले सामने आए। लेकिन ममता बनर्जी किसी कार्रवाई के बदले उस मां माटी और मानुष पर संवेदना की मरहम लगाती रहीं।

ममता बनर्जी से सवाल जब होता है कि नेताओं की आदत के मुताबिक वो बयान देती हैं। जब कोई कोलकाता के साल्ट लेक का मसला उठाता है तो यूपी का हाथरस कांड याद दिलाती हैं। जब कोई कामदुनी का जिक्र करता है कि गोल मोल जवाब,जब उत्तरी बंगाल के दुष्कर्म कांड का जिक्र होता है तो उसे प्रेम प्रसंग बता देना। यानी कि इस तरह की घटनाओं से खुद का बचाव दूसरे पर तोहमत लगा करना उनकी शगल बन चुकी है। बंगाल की सियासत पर नजर रखने वाले कहते हैं कि ममता बनर्जी को पता है कि जीत कैसे हासिल की जाती है। लिहाजा अब उनके लिए इस तरह की घटनाएं सामान्य सी लगती हैं। लेकिन आरजी कर मेडिकल कांड के बाद महिलाएं जिस तरह से सड़कों पर उतरीं उसके बाद ममता को भी यह समझ में आने लगा कि मामला हाथ से निकल सकता है लिहाजा वो पीएम मोदी को चिट्ठी लिखती हैं। दुष्कर्म के आरोपियों को मौत की सजा देने की मांग करती हैं। लेकिन सवाल तो यही है कि क्या ममता इस्तीफा देंगी। इस सवाल का जवाब पेंचीदा है। सियासत में अगर संवेदना की जगह होती तो शायद इस तरह के मामले नहीं आते। सभी राजनीतिक दल खुलकर दुष्कर्म जैसे मसले पर एक मंच पर खड़े होते। लेकिन सियासत का यही दस्तूर है। हालांकि मां, माटी और मानूष की बात करने वाली ममता को बंगाल की माटी पर मां और मानुष के विरोध में राजनीति नजर आ रही है।