Subhash Chandra Bose: गुमनामी बाबा को लोग क्यों मानने लगे थे नेता जी, जानें – बक्से का कनेक्शन
Subhash Chandra Bose Birthday: वैसे तो साल का हर एक दिन किसी ना किसी वजह से खास होता है. हालांकि 23 जनवरी का दिन कुछ अलग है. इस खास दिन को भारत सरकार पराक्रम दिवस के तौर पर मनाती है और नाता नेता जी सुभाष चंद्र बोस है. 1945 में विमान हादसे के बाद नेता जी का क्या हुआ. लोगों में यह जानने की उत्सुकता भी बनी रही. लेकिन 1985 में यूपी के फैजाबाद में एक शख्स की मौत होती है जो गुमनामी बाबा के नाम से मशहूर थे.
ऐसा कहा जाता था कि वो कोई और नहीं बल्कि नेता जी है. इस तरह के दावों की जांच के लिए आयोग का गठन भी किया गया था. आयोग का निर्णय क्या था. उसके बारे में भी जानकारी देंगे. लेकिन गुमनामी बाबा आखिर कौन थे. अगर वो सामान्य नागरिक थे उनका अंतिम संस्कार गुफ्तार घाट के करीब कंपनी गार्डेन में क्यों किया गया था.19 सितंबर 1985 को फैजाबाद में गुफ्तार घाट पर गुमनामी बाबा का अंतिम संस्कार किया जाता है. आमतौर पर हिंदू विधि विधान में अंतिम संस्कार से पहले मृत व्यक्ति के चेहरे को दिखाने की रवायत है. लेकिन गुमनामी बाबा का चेहरा नहीं दिखाया गया. यहीं से एक थ्योरी ने जन्म लिया कि गुमनामी बाबा कोई और नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस थे.
17 सितंबर 1985 को हुई थी मौत
नाम गुमनामी बाबा. लेकिन सवाल कई. क्या वो खुद सुभाष चंद्र बोस थे. या वो नेता जी के बेहद करीबी थे. क्या नेता जी अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त में फैजाबाद में एक अलग पहचान के साथ रह रहे थे. इस सस्पेंस से पर्दा उठाने के लिए यूपी सरकार ने जस्टिस विष्णु सहाय कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का फैसला किया था. 17 सितंबर 1985 को गुमनामी बाबा की मौत होती है. मौत के दो दिन बाद अंतिम क्रिया कर्म के लिए सरयू नदी के किनारे गुफ्तार घाट का चुनाव किया जाता है. चुपचाप अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अंतिम संस्कार से पहले किसी रासायनिक लेप के जरिए चेहरे को विकृत कर देने की कोशिश भी हुई थी कि ताकि कभी पहचान ना हो सके.
किराये पर रहते थे गुमनामी बाबा
गुमनामी बाबा की जिंदगी को लेकर जानकारी भी उतनी सटीक नहीं है. कहा जाता है कि फैजाबाद में कभी किसी एक घर में लंबे समय तक नहीं रहे. मकान को बदलते रहते थे. इसके अलावा जो लोग उनकी निजी सेवा में लगे हुए थे वो भी बदल दिए जाते थे. फैजाबाद के सिविल लाइंस इलाके में राम भवन में उन्होंने आखिरी सांस ली थी. मौत के दो दिन बाद उनके सेवक जब राम भवन पहुंचे तो उन्होंने गुमनामी बाबा को मृत अवस्था में देखा. यह बात आग की तरह फैली. देश के अलग अलग हिस्सों में चर्चा होने लगी कि फैजाबाद में जिस गुमनामी बाबा की मौत हुई है वो कोई और नहीं सुभाष चंद्र बोस ही थे.
17 सितंबर 1985 से शुरू हुआ सवाल
यहीं से सवाल शुरू हुआ कि अगर 17 सितंबर को 1985 को मरने वाले शख्स कोई और नेता जी थे तो 1945 में विमान हादसे में कौन शिकार हुआ था. दरअसल भारत सरकार का भी वर्जन है कि नेता जी का विमान हादसे में मौत हुई थी. दरअसल गुमनामी बाबा और नेता जी के कनेक्शन के पीछे एक बक्सा था. राम भवन से एक बक्सा मिला, उसमें नेता जी के जन्मदिन की तस्वीरें थीं. उनके माता-पिता औप परिवार के दूसरे सदस्यों की तस्वीर थी. इसके साथ गोल आकार वाले दर्जनों चश्मे थे. 554 ब्रांड की सिगरेट, रोलेक्स की घड़ी के साथ आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म थी.
इसके अलावा 1974 में कलकत्ता के डेली आनंद बाजार पत्रिका में 24 किस्त में छपी खबरें थीं. जापान, जर्मनी और अंग्रेजी साहित्य की किताबें थी. भारत चीन युद्ध से जुड़ी किताबें और पन्नों पर कमेंट मिले थे. इसके साथ ही नेता जी की मृत्यु की जांच के लिए खोसला और शाहनवाज आयोग के गठन, टेलीग्राम का जिक्र था. इस तरह से चर्चा होने लगी कि फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा या तो खुद नेता जी थे या उनके कोई बेहद करीबी थे.
कुछ सुराग मिले फिर भी बने रहे सवाल
अभी भी सवाल यही था कि आखिर गुमनामी बाबा ही नेता क्यों. दरअसल वो जर्मन, बंगाली, जापानी और अंग्रेजी बिना किसी रुकावट बोलते. इससे लोगों को लगने लगा कि वो कोई और नहीं बल्कि नेता जी ही हो सकते हैं. बता दें कि गुमनामी बाबा 70 के दशक में फैजाबाद आए. वो पहले लालकोठी उसके बाद बस्ती गए. हालांकि वो वहां से वापस फैजाबाद लौटकर राम किशोर पंडा और उसके बाद सब्जी मंडी के बीच लखनऊवा में रहते थे.
खास बात यह भी है कि 23 जनवरी के दिन कुछ खास लोग उनसे मिलने के लिए आते थे. उस वक्त किसी और मिलने की इजाजत नहीं होती थी. यहां तक कि उनके सेवक भी नहीं पास में होते थे. 17 सितंबर 1985 को गुमनामी बाबा के निधन के समय उनके दो सेवक कृष्ण गोपाल श्रीवास्तव और जगदंबे थे. निधन के बाद दोनों में गुमनामी बाबा की संपत्ति को लेकर झगड़ा हुआ और दोनों ने कमरे पर ताले लगा दिए.
इस वजह से रहस्य और गहराया
गुमनामी बाबा के मौत के बाद रहस्य इसलिए भी गहरा गया कि जो लोग 23 जनवरी को उनके जन्मदिन पर आते थे. वो उनकी मौत के समय नहीं आए. दो दिन इंतजार के बाद प्रशासन और फौज ने उन्हें गुफ्तार घाट के करीब कंपनी गार्डेन में अंतिम संस्कार किया. अब सवाल यह भी था कि किसी भी साधारण शख्स या सिविलियन का अंतिम संस्कार सैन्य इलाके में नहीं किया जा सकता. गुमनामी बाबा की मौत के बाद भी किसी का अंतिम संस्कार नहीं किया गया. इस वजह से शक गहराने लगा और जांच के लिए मुखर्जी कमीशन के साथ साथ दो और आयोग बनाए गए. तीनों आयोग ने गुमनामी बाबा को नेता जी मानने से इनकार कर दिया था.
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