पाक युद्ध-अमेरिका की जिल्लत से आया MSP,हरियाणा-पंजाब के किसान ही क्यों करते हैं डिमांड
MSP History And New Model For Farmers:इन दिनों एक बार फिर MSP की चर्चा है। पंजाब और हरियाणा के किसान फिर से एमएसपी की प्रमुख मांग को लेकर सड़कों पर हैं। सबसे पहला सवाल यही है कि 28 राज्यों में 11 करोड़ ज्यादा किसान परिवार में से पंजाब-हरियाणा के ही किसान क्यों सड़क पर हैं। दूसरे जब 22 फसलों पर एमएसपी दी जा रही है तो उसकी गारंटी क्यों मांगी जा रही है। और मोदी सरकार जब यह कह रही है कि वह तो किसानों के हितों में काम करती है, और वह एमएसपी अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा दे रही है, तो फिर उसे एमएसपी की गारंटी देने में परहेज क्यों है। तो इसे समझने के लिए एमसएपी की जरूरत क्यों पड़ी, इसे समझने के लिए उस दौर में जाना होगा..
पाक युद्द और अमेरिका की जिल्लत ने खोली राह
आजादी के समय भारत में एमएसपी की व्यवस्था नही थी। और यह वह दौर था जब भारत अपनी जरूरत का अनाज भी पैदा नहीं कर पाता था। और उसे रोटी के लिए भी अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता था। यानी भारत अपनी जरूरता का गेहूं,चावल भी नहीं पैदा करता था। यह वह दौर था भारत चीन से युद्ध हार चुका था। और देश में सूखा पड़ा था। इसकी वजह से अकाल की स्थिति पैदा हो गई। उसी समय पाकिस्तान ने भारत में हमला कर दिया था। 1965-66 के दौर में भारत युद्ध, अकाल जैसे संकट का सामना कर रहा था। उस दौर में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन की अगुआई में हरित क्रांति की शुरूआत की। और यह तय हुआ कि खाद्यान्न संकट को दूर करने के लिए गेहूं और धान में आत्मनिर्भर बनना जरूरी है।
ऐसे में किसानों को गेहूं की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का आइडिया सामने आया। और हरियाणा-पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जलवायु और उर्वरता को देखते हुए हरित क्रांति की शुरूआत की गई। और सबसे पहले गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया।
हरियाणा-पंजाब में आंदोलन क्यों
एक सच यह भी है कि देश के 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का फायदा मिलता है। और उसमें से भी करीब 80 फीसदी किसान पंजाब और हरियाणा के होते हैं। पंजाब और हरियाणा में हरित क्रांति की शुरूआत होने का साइड इफेक्ट यह हुआ है कि ज्यादातर किसान गेहूं और धान की ही खेती करते हैं। क्योंकि यह न केवल आसानी से पैदा हो जाता है, बल्कि राजनीतिक रसूख की वजह से यहां की सरकारें उनकी फसलों को एमएसपी पर ज्यादा से ज्यादा खरीद लेती है। लेकिन इस शॉर्ट कट की वजह से अब पंजाब के खेतों में उर्वरता की कमी हो रही है। जल का दोहन ज्यादा होने से पानी का संकट हो रहा है। लेकिन किसान दूसरी फसलों की खेती की ओर शिफ्ट नहीं हो रहे हैं।
जबकि दूसरे राज्यों में परिस्थितियां अलग हैं। मसलन उत्तर प्रदेश में एमएसपी पर करीब 40 फीसदी खरीद होती है। जबकि दक्षिण भारत में किसान नकदी फसलों जैसे कपास, प्याज, दालों के उत्पादन पर ज्यादा निर्भर हैं। और उनकी चुनौतियां दूसरी हैं।
एमएसपी गारंटी देने से क्यों बच रही हैं सरकारें
ऐसा नहीं कि एमएसपी की गारंटी देने से मोदी सरकार ही बच रही है। इसके पहले 2010 में यूपीए सरकार ने उसके द्वारा बनाए गए एम.एस.स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करने से मना कर दिया था। और अब मोदी सरकार भी एमएसपी गारंटी देने से बच रही है। असल में अगर एमएसपी की गारंटी कानून लागू हुआ तो किसानों को बाजार में एमएसपी मूल्य न मिलने पर, सरकार की बाध्यता होगी कि वह किसानों से उनकी फसल एमएसपी पर खरीदें और अगर ऐसा होता है तो सरकार को करीब 10 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
इसके अलावा सरकारों को महंगाई बढ़ने का भी डर है। क्योंकि अगर एमएसपी पर फसलों की खरीद हुई तो उनसे बनने वाले उत्पादों की कीमतें बढ़ने का डर है।
किसान कौन सा फार्मूला चाहते हैं..
असल में एम.एस.स्वामीनाथन ने एमएसपी तय करने के लिए तीन फॉर्मूलों की सिफारिश की थी…
1. फसल की लागत के आधार पर एमएसपी
2.फसल की लागत और मजदूरी लागत जोड़ कर एमएसपी
3.फसल की लागत, मजदूरी लागत और जमीन की उपयोगिता को जोड़ कर एमएसपी
किसान इसी तीसरे फॉर्मूला के आधार पर एमएसपी की मांग कर रहे हैं। और अगर ऐसा होता है तो किसानों को 25-30 फीसदी ज्यादा एमएसपी मिलने लगेगा।
क्या दूसरा मॉडल संभव नहीं
दूसरे मॉडल को समझने के लिए कुछ सवालों को समझते हैं। पहला यही कि क्या कोई कार कंपनी अपनी कार की कीमत तय करने के लिए सरकार के रेट इंतजार करती है।
क्या कोई आटा, बिस्कुट, टॉफी, शैम्पू बनाने वाली कंपनी कीमत तय करने के लिए सरकार के रेट का इंतजार करती हैं।
क्या टीवी, फ्रिज, एसी, बाइक, स्कूटी, कपड़ा बनाने वाली कंपनी कीमत तय करने के लिए सरकार के रेट का इंतजार करती हैं।
इसका सीधा जवाब- नहीं है, कंपनियां जो दाम करती हैं, तो ग्राहक अपनी जेब के अनुसार उसे खरीदता है। तो क्या किसानों को यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए। वह क्यों सरकार की मंडियों यानी APMC में जाकर अपनी फसल बेचें। खैर यह ऐसा सवाल है जो बड़े कृषि सुधारों को लागू करने की वकालत करता है। लेकिन ऐसा करना राजनीतिक संघर्ष को दावत देना है। कुछ इसी तरह के सुधार की कोशिश मोदी सरकार कर चुकी है और उसके बाद 13 महीने तक किसान आंदोलन चला था और उसके आगे मोदी सरकार झुकने को मजबूर हुई थी।