दलित समाज का नया रहनुमा चंद्रशेखर आजाद, माया को अब सम्मान

 

Chandrashekhar Azad News: आम चुनाव 2024 के नतीजे जब सामने आए तो इसमें दो मत नहीं था कि एनडीए की सरकार नहीं बनेगी. लेकिन एक बात तय थी कि बीजेपी को अब सहयोगियों की मदद लेनी होगी. वजह यह है कि उत्तर प्रदेश की जनता ने 2019 जैसा भरोसा नहीं जताया. खुद पीएम मोदी की जीत-हार का अंतर 1.5 लाख में सिमट चुका था. यह डेढ़ लाख वाला जो अंतर है वो एक और शख्स से जुड़ा है जो अपने आपको 2019 से पहले चंद्रशेखर आजाद ऊर्फ रावण कहते थे, हालांकि 2019 के चुनाव के समय अपने नाम से रावण शब्द हटा दिया. वैसे तो यह अपनी पार्टी के एकलौते सांसद हैं. लेकिन उनकी जीत के मायने अलग अलग हैं.

सहारनपुर के रहने वाले हैं चंद्रशेखर आजाद
चंद्रशेखर रावण का नाता ना सिर्फ यूपी के सहारनपुर जिले से है बल्कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती के जाटव समाज है, यह वही समाज है जिसके दम पर यूपी की राजनीति में मायावती ने संघर्ष किया. सियासत में अपनी जगह बनायी. यूपी की सत्ता पर काबिज हुईं लेकिन वह समाज उनसे दूर जा रहा है. अगर ऐसा ना होता तो बीएसपी कम से कम एक दो सीट तो जरूर जीतती लेकिन 2024 के नतीजों में यूपी से बीएसपी के खाते में शून्य सीटें आईं है.ऐसे में आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि क्या कहीं चंद्रशेखर आजाद ही तो जिम्मेदार नहीं.

बादलपुर के लोगों ने क्या कहा था

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इंडिया अड्डा की टीम मायावती के गांव बादलपुर पहुंची थी. टीवी की स्क्रीन पर जो तस्वीरें आपको नजर आ रही हैं वो मायावती के गांव की है. यहां के लोगों से हमारी टीम ने कई सवाल किए मसलन मायावती के करिश्मे में कमी क्यों आ रही है. चंद्रशेखर आजाद क्या उनकी जगल ले पाएंगे. उस सवाल के जवाब में गांव के लोगों ने कहा था कि मायावती जी के लिए दिल में प्रेम है लेकिन उन्हें अब दूसरों को भी मौका देना चाहिए.

गांव के युवाओं का यह भी कहना था कि कम से कम बहन जी को नगीना वाली सीट छोड़ देनी चाहिए थी. उस सीट से उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए था. अगर आप नतीजों को देखें तो गांव वालों की बात सच निकली. चंद्रशेखर आजाद चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं और बीएसपी नंबर तीन पक आ गई वोट का प्रतिशत भी तीन फीसद से अधिक नहीं था. तो सवाल यही कि क्या मायावती अपने ही वोटबैंक को नहीं सहेज पा रही हैं.

माया के वोटबैंक में लगी सेंध

इस सवाल का जवाब आप दलित समाज की 21 फीसद वोटबैंक से समझ सकते हैं. इस दफा चुनाव में दलित वोटबैंक में बिखराव हुआ है. ना सिर्फ जाटव समाज के लोग छिटके बल्कि गैर जाटव ने भी अपने लिए अलग ठिकाना तलाश लिया.सियासत के जानकार भी कहते हैं कि भले ही चंद्रशेखर आजाद ने एक ही सीट पर जीत दर्ज की हो.लेकिन वो एक सीट ही पूरे यूपी की दलित आबादी को संदेश देने के लिए पर्याप्त है. बहन मायावती भी जब संघर्ष के दौर से गुजर सोने की तरह तप कर कुंदन बनी तो यूपी के सभी हिस्सों में दलित समाज के लिए वो किसी जादू से कम नहीं थीं.

मायावती के सामने चुनौती
दलित समाज को लगने लगा था कि उन्हे उनका रहनुमा मिल चुका है. ठीक वैसे ही अब चंद्रशेखर आजाद के प्रति दलित युवाओं में जोश है. वो ये मानकर चल रहे हैं कि उनके लिए उगता सूरज, नगीना कोई और नहीं बल्कि नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद हैं. चंद्रशेखर आजाद ने अब ऐलान भी कर दिया है कि वो 10 विधानसभा के उपचुनाव में उम्मीदवार उतारेंगे. उनके उम्मीदवार उतारने से इंडिया गठबंधन, बीजेपी या बीएसपी किसे अधिक नुकसान पहुंचेगा वो तो नतीजे ही बताएंगे. लेकिन एक बात तो साफ है कि अगर वोट शेयर में उनकी आजाद समाज पार्टी, बीएसपी से आगे रहती है तो बहन जी को सोचना पड़ जाएगा कि अब आगे क्या…