किसान आंदोलन पार्ट -2, क्या इस बार झुकेगी सरकार! कब तक सड़कों पर उतरता रहेगा अन्नदाता
Farmer protest : साल 2020 में किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सड़क पर थे। इन कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा, यूपी के किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठ गए थे। 378 दिनों तक इन सीमाओं पर क्या कुछ चला। इसे हम आप सब देख चुके हैं। कुछ ऐसे ही हालात फिर से बने हैं। पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों ने 13 फरवरी को दिल्ली पहुंचने का ऐलान किया है। पिछली बार जमे तो तीन कानून वापस करा दिया। इस बार ये क्या चाहते हैं?
किसानों की हैं 12 मांगें
हम बताते हैं किसान इस बार एक दो तीन नहीं बल्कि पूरे 12 मांगों के साथ हाजिर हैं। इसमें सबसे अहम MSP की गारंटी पर कानून की मांग है। किसानों के पिछले आंदोलन के दौरान सरकार अपने हाथ जला चुकी है। चुनाव सिर पर है तो इस बार वह किसी भी तरह अपनी किरकिरी नहीं कराना चाहती। किसान आंदोलन जोर न पकड़े इसे लेकर वह काफी सचेत है। किसान नेताओं के साथ एक तरफ बातचीत चल रही है तो सीमाओं की किलेबंदी भी कर दी गई है।
बॉर्डर पर ड्रोन से भी नजर
किसान दिल्ली में दाखिल न होने पाएं, उन्हें रोकने के लिए पिछली बार की तरकीबें फिर से आजमाई गई हैं। रोड पर कंक्रीट के बोल्डर, गाड़ियों के टायर पंचर करने के लिए कीलें और नुकीले तार तक लगाए गए हैं। यहां तक कि नजर रखने के लिए ड्रोन भी उड़ा दिया गया है। हालांकि, अन्नदाता के लिए कील, पत्थरों का यह इंतेजाम, टायर का तो पता नहीं लेकिन लोगों की नजरों में बहुत चुभा था।
किसानों को जान क्यों गंवानी पड़ती है?
बिडंबना यह है कि मुद्दा छोटा हो या बड़ा अपनी हर बात सरकार तक पहुंचाने के लिए किसानों को खेत छोड़ सड़क क्यों नापनी पड़ती है? जान क्यों गंवानी पड़ती है? किसानों का यह आंदोलन कौन सी करवट लेगा। यह समझना अभी तो मुश्किल है लेकिन इस आंदोलन की वजह और किसानों समस्याओं को समझने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।
आज की नहीं हैं समस्याएं
किसानों की ये समस्याएं आज की नहीं हैं, इसके मूल में अंग्रेजों द्वारा बनाई वे नीतियां हैं जिनका उद्देश्य ही संसाधनों का दोहन और किसानों का शोषण था। उनकी सारी नीतियां ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूलने और अपना खजाना भरने के लिए थीं। इन नीतियों से जमींदारों, महाजनों और बिचौलियों को फायदा तो पहुंचता था लेकिन किसान भूखमरी के कगार पर आ जाते थे।
इन नेताओं ने दी किसान आंदोलन को दिशा
आजादी के बाद उम्मीद जगी कि अन्नदाताओं की हालत में सुधार आएगा। इसके लिए भूमि सुधार हुए, जमींदारी प्रथा को खत्म किया गया लेकिन इसका जो फायदा किसानों को मिलना था, वह नहीं मिला। अपनी उपज की वाजिब कीमत न मिलने का असंतोष किसानों में बढ़ता गया। ऐसे ही समय में देवीलाल, चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत ने किसान आंदोलन को एक नई दिशा दी।
पेंशन की मांग भी कर रहे किसान
अभी देखें तो किसान जिन मांगों को लेकर सड़क पर उतरे हैं उनमें एक मांग स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना भी है। वही, स्वामीनाथन जिन्हें सरकार ने हाल ही में भारत रत्न देने की घोषणा की है। किसान की कर्जमाफी, पेंशन सहित कई बहुत बुनियादी मांगें हैं जिन पर सरकार गौर कर रही है लेकिन वैश्वीकरण और बाजार के इस दौर में जहां हर चीज मुनाफे से तय होती है, वहां कोई देश अपने दरवाजे अचानक से बंद नहीं कर सकता। ऐसे में एक ऐसे समझौते पर आना जहां बाजार और किसान दोनों के हित सधें, इतना भी आसान नहीं लेकिन यह सरकार के लिए असंभव भी नहीं वह भी तब जब वन रैंक वन पेंशन जैसे कई जटिल मुद्दों को वह सुलझा चुकी है।