चुनावी अखाड़े में सैफई परिवार, अखिलेश ने इस बार दिखाया ‘5 का दम’
Lok Sabha Election 2024: इस बार लोकसभा चुनाव में मुलायम परिवार धमाकेदार वापसी के लिए चुनावी मैदान में है। एक दो नहीं बल्कि मुलायम परिवार के पांच सदस्य सियासी अखाड़े में अपनी जीत का दम भर रहे हैं। खास बात यह है कि परिवार के सभी पांच सदस्य यादव बहुल वाली सीटों से उम्मीदवार हैं। कन्नौज से खुद अखिलेश यादव, मैनपुरी से उनकी पत्नी डिंपल यादव, फिरोजाबाद सीट से अक्षय यादव, बंदायू सीट से आदित्य यादव और आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव चुनावी ताल ठोंक रहे हैं।
खास बात यह है कि यह लोकसभा चुनाव मुलायम सिंह के निधन के बाद हो रहा है। पिछली बार के मुकाबले इस बार यादव परिवार पूरी तरह से एकजुट है। चाचा शिवपाल सिंह यादव भी साथ हैं। टिकट बदले जाने और टिकट न मिलने की नाराजगी नहीं दिखी। नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक पूरा सैफई परिवार एकजुट नजर आ रहा है। सीटों पर सियासी गणित साधे रखने के लिए अखिलेश यादव और पूरी सपा फूंक-फूंक कर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रही है।
यहां हम उन पांच सीटों और वहां के सियासी समीकरण पर एक नजर डालेंगे जहां से मुलायम परिवार के पांच सदस्य चुनावी दौड़ में हैं। ये पांच सीटें उन सीटों में शामिल हैं जहां यादव मतदाताओं की संख्या 20 प्रतिशत या उससे अधिक है। पहले हम बात करते हैं कन्नौज सीट की जहां से अखिलेश यादव खुद चुनाव लड़ रहे हैं।
कन्नौज में सुब्रत पाठक से अखिलेश का मुकाबला
कन्नौज में मतदाताओं की कुल संख्या 18 लाख करीब है। इसमें करीब 4 लाख यादव वोटर, 3.5 लाख मुस्लिम, 2.5 लाख ब्राह्मण, दो लाख ठाकुर, 80 हजार मौर्य, 80 हजार निषाद, 70 हजार वैश्य, 50 हजार लोधी राजपूत और 4 लाख के करीब अन्य मतदाता हैं। पिछले चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक ने इस सीट पर डिंपल यादव को करीब 12 हजार वोटों से हराया था। इस बार इस सीट पर अखिलेश का मुकाबला भाजपा के सुब्रत पाठक और बसपा उम्मीदवार इमरान बिन जफर से है। 2022 के विधानसभा चुनाव में छिबरामऊ, तिर्वा, रसूलाबाद, कन्नौज भाजपा ने जीती जबकि एक सीट विधुना सपा के खाते में गई। बसपा के जफर यदि मुस्लिम मतदाताओं में सेंधमारी करते हैं तो अखिलेश की राह यहां मुश्किल हो सकती है।
मैनपुरी सीट से डिंपल यादव
अब बात डिंपल यादव की। डिंपल सपा के गढ़ मैनपुरी से चुनाव मैदान में हैं। वह इस सीट पर मौजूदा सांसद भी हैं। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 18 लाख के करीब है जिसमें 4 लाख यादव, 2.5 लाख शाक्य, दो लाख ठाकुर, 1.5 लाख ब्राह्मण, 1.5 लाख दलित, 1.25 लोध, 1 लाख पाल-धनगर, 1 लाख कश्यप, 80 हजार मुस्लिम और 2 लाख से ज्यादा अन्य वोटर हैं। 1996 में पहली बार मुलायम सिंह इस सीट से सांसद बने तबसे इस सीट पर सपा अजेय रही है। भाजपा ने मंत्री व स्थानीय विधायक जयवीर सिंह को मैदान में उतारा है तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूर्व विधायक शिव प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। मैनपुरी सीट पर इस बार विरासत और बदलाव की जंग है।
अक्षय यादव फिरोजाबाद सीट से
मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई और रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव इस बार फिरोजाबाद सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 18 लाख से अधिक है जिसमें सवा चार लाख यादव, 2.25 लाख मुस्लिम दो लाख ब्राह्मण, दो लाख वैश्य, 2 लाख दलित, 1.5 लाख ठाकुर, 70 हजार लोधी राजपूत, 50 हजार शाक्य और 3 लाख से ज्यादा अन्य मतदाता हैं। इस सीट पर अक्षय यादव का मुकाबला भाजपा के विश्वदीप सिंह और बसपा के चौधरी बशीर से हो रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अक्षय को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा..उन्हें भाजपा के डॉ. चंद्रसेन जौदान ने 28 हजार से अधिक मतों से हराया।
बदायूं से शिवपाल के बेटे आदित्य
तो मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव इस बार बदायूं सीट से उम्मीदवार हैं। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 19 लाख से अधिक है जिसमें यादव वोटर 4 लाख, मुस्लिम 3.5 लाख, दलित 2.5 लाख, शाक्य डेढ़ लाख, ब्राह्मण डेढ़ लाख, एक लाख लोधी राजपूत, 80 हजार वैश्य, 80 हजार कश्यप, 50 हजार ठाकुर और 3.2 लाख अन्य मतदाता हैं। पिछले चुनाव में भाजपा उम्मीदवार संघमित्रा मौर्य ने सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को 18 हजार से अधिक वोटों से हराया। इस बार आदित्य का मुकाबला भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य और बसपा के मुस्लिम खां से है।
आजमगढ़ सीट से एक बार फिर धर्मेंद्र यादव
पूर्वांचल की आजमगढ़ सीट पर मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई अभय राम यादव के बेटे धर्मेंद्र यादव चुनाव मैदान में है। 2022 के उपचुनाव में धर्मेंद्र इस सीट पर हार गए थे। इस बार अपनी वापसी के लिए वह पूरा दम-खम लगा रहे हैं। आजमगढ़ सीट पर 4 लाख यादव, 3.5 लाख दलित, तीन लाख मुस्लिम, 1.5 लाख राजभर, 1.5 लाख ठाकुर, 1 लाख ब्राह्मण, एक लाख भूमिहार, 80 हजार कायस्थ और ढाई लाख से अधिक अन्य वोटर हैं…इस बार इस सीट पर धर्मेंद्र का मुकाबला मौजूदा भाजपा सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ से है।
अपने नेतृत्व में सपा को चुनाव नहीं जिता पाए हैं अखिलेश
सपा अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश यादव पार्टी को चुनाव नहीं जिता पाएं हैं..चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का दोनों चुनाव में उनका नेतृत्व कमाल नहीं कर पाया है। अपनी परंपरागत और दबदबे वाली सीटों से अपने कुनबे को उतारकर अखिलेश ने बड़ा दांव लगाया है। उनकी रणनीति और दांव इस बार कितना कारगर होता है…यह 4 जून को आने वाले चुनाव नतीजे ही बताएंगे।