“तुम नहीं हम”: हिंदुत्व की जमीन पर चलने के लिए सब अमादा?

 

Hindu Politics: बीजेपी ‘राम’ का झंडा बुलंद करने में लगी है, बीजू जनता दल ‘कृष्ण’, उद्धव सेना “राम” भरोसे है तो ‘आप’ खुद को “हनुमान” भक्त बता रही और ममता काली पूजा में व्यस्त हैं. यानी राम…कृष्ण..हनुमान..और काली…हर कोई हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करने के लिए आतुर है. सनातन धर्म के नाम पर हर राजनीतिक दल “तुम नहीं मैं” के नारे पर चल रहा है, वजह सिर्फ लोकसभा चुनाव समझ आ रहा है क्योंकि बरसाती मेंढक की तरह ये पार्टियां भी आम चुनाव आते ही बिल से बाहर फूदकती दिख रही हैं.

हिंदुत्व से ऐतराज लेकिन परहेज भी नही

हालांकि, अगर बीजेपी को छोड़ दें, तो कोई कोर हिंदुत्व की बात नहीं करता है. भगवा दल अपने उभार से ही हिंदुत्व की बात करती आई. फिर चाहे बात राम की हो, कृष्णा की या फिर शिव की…भगवा दल हमेशा से हिंदुत्व की तरफ अपना झुकाव दिखाता नजर आया है. लेकिन सवाल है कि खुद को सेक्युलर बताने वाली पार्टियां भी हिंदुत्व की जमीन को समतल करने में क्यों लगी हैं? इनमें से ममता और केजरीवाल ने तो सफेद टोपी पहनने से भी परहेज नहीं किया है तो फिर अचानक “हनुमान और काली” इन्हें क्यों याद आ रहे हैं. तो इसके पीछे की वजह सिर्फ वोट है, जो इनकी कुर्सी हिला सकता है.

आप और टीएमसी की सियासत समझिए

तो क्या हिंदुत्व के सहारे इनकी सत्ता बची रह जाएगी, तो इसका जवाब शायद “हां” है. दरअसल, ममता की अब तक की जीत में मुस्लिम एकतरफ उनके साथ रहें हैं, वहीं, आप ने भी दिल्ली और पंजाब में समीकरण को साधते हुए जीत हासिल किया है जबकि ओडिशा में नवीन पटनायक अपनी “ईमानदार छवि” के चलते लंबे समय से रिकॉर्ड जीत हासिल करते आ रहे हैं.

क्या राम मंदिर से विपक्ष को है डर

लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद मौजूदा समय की परिस्थिति अब विपक्षी दलों के खिलाफ जा सकती है. क्योंकि बीजेपी राष्ट्रवाद, राम मंदिर और हिंदुत्व के नाम पर जबरदस्त “इवेंट मैंनेजमेंट” पूरी दुनिया में करती दिख रही है! और हाल ही में आए तीन हिंदी पट्टी राज्यों के नतीजों ने विपक्षी दलों की नींद उठा दी है. बीजेपी अपर कास्ट के साथ ओबीसी,दलित, जाट, गुर्जर समेत तमाम छोटी-बड़ी जातियों पर अपना प्रभाव छोड़ती नजर आ रही है. तो वोटों का तुष्टीकरण भी तेजी से होता दिख रहा है. मुस्लिम परस्त दल AIMIM, IUDF और ISF खुलकर राम मंदिर और बीजेपी का विरोध कर रहे हैं. तो कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दल कन्फ्यूज है. वो “राम और रहीम” दोनों पर अपना रुख साफ नहीं कर पा रहें. कांग्रेस का दायरा चुनाव दर चुनाव सिमट रहा तो क्षेत्रीय दल भी उत्तर में कमजोर होते नजर आ रहे हैं.

बंगाल में ममता को इस चुनाव में हुआ है नुकसान

बंगाल में ममता बनर्जी को जिस तरह पंचातय चुनाव में इंडियन सेकुलर फ्रंट ने मुस्लिम वोटों का नुकसान पहुंचाया है, वो उससे उभर नहीं पा रही है. टूट और महाविकास अघाड़ी में जाने के बाद उद्धव सेना भी “तीन-तेरह” कहीं नहीं दिख रही है. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी AAP भी इस बार दिल्ली और पंजाब दोनों जगह कमजोर है तो नवीन पटनायक हाल के समय में पार्टी नेताओं पर लगे आरोप और बीजेपी के “हिंदुत्व पॉलिटिक्स” से थोड़ा असहज हैं, ऐसे में सब “तुम नहीं हम” बड़े हिंदू! की पिच पर बैटिंग करना चाह रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि अगर हिंदू वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा, उनके पाले में आ जाए तो उनकी सत्ता बरकरार रहेगी.