Karpoori Thakur: किसने किया था कर्पूरी ठाकुर को ब्लैकमेल, जानें- वो सनसनीखेज किस्सा

 

Karpoori Thakur Story: वो बेदाग हैं. उनके ऊपर लगाए गए आरोप झूठे, बेबुनियाद और तथ्यहीन हैं. बदनाम करने की नीयत से ओछी हरकत की गई थी. इन टिप्पणियों के साथ पटना हाईकोर्ट ने साल 1979 में उन्हें बेदाग होने का फैसला सुनाया. अब आप सोच रहे होंगे की बात हम किसकी करने जा रहे हैं. बात हम बिहार के उस शख्स कर्पूरी ठाकुर की कर रहे हैं. जो सामाजिक न्याय के मसीहा थे. जो बिहार के सीएम थे. जिनकी कथनी और करनी में भेद नहीं था. जिन्हें मोदी सरकार ने 23 जनवरी 2024 को भारत रत्न देने का फैसला किया. लेकिन एक मौका ऐसा भी आया जब उनकी जिंदगी में भूचाल आ गया था.

नेपाल की महिला ने लगाए थे आरोप

कहावत है कि राजनीति काली कोठरी की तरह है. जिसमें सफेद खद्दर के दागदार होने की आशंका बनी रहती है. आशंका इसलिए कि आरोप सही और झूठे दोनों हो सकते हैं. यहां हम बात करेंगे कि कर्पूरी ठाकुर पर आरोप क्या लगे थे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक काठमांडू की रहने वाली एक टीचर प्रेमलता राय ने रेप का आरोप लगाया था. जब यह मामला खबरों की हेडलाइन बना तो बिहार की सियासत भी गरमा गई. आरोप लगाने वाली प्रेमलता राय ने पटना के सीजेएम अदालत में हलफनामा देकर बताया था कि आपातकाल के दौरान कर्पूरी ठाकुर काठमांडू में छिपे हुए थे और उस दौरान उन्होंने रेप किया था.

जब कर्पूरी बोले- मनगढ़ंत है किस्सा

महिला के आरोप लगाने के बाद कर्पूरी ठाकुर मीडिया के सामने आए और कहा कि यह सब मनगढ़ंत किस्सा है. राजनीतिक विरोधियों ने बदनाम करने की नीयत से महिला का इस्तेमाल किया है. कर्पूरी ठाकुर ने उस महिला को शादीशुदा बताया था. इस तरह का दावा जब उन्होंने किया तो प्रेमलता राय की तरफ से उनके खिलाफ कंटेम्पट केस पटना हाइकोर्ट में दायर किया गया. हालांकि पटना हाइकोर्ट ने तकनीकी आधार पर प्रेमलता राय की अर्जी को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया था. बता दें कि कर्पूरी ठाकुर के खिलाफ जब अभियान चला तो उसकी धार को कुंद करने के लिए ना सिर्फ उनकी पार्टी बल्कि सीपीआई कूद पड़ी. सीपीआई अपने मुखपत्र जनशक्ति के जरिए लगातार प्रेमलता राय को एक्सपोज कर रही थी.

पटना हाइकोर्ट से मिली थी राहत

सीपीआई के चीफ व्हिप शिवनंदन पासवान ने सीजेएम कोर्ट में प्रेमलता राय पर अविवाहित होने का झूठा हलफनामा पेश करने के लिए अर्जी दायर की. दरअसल जनशक्ति पेपर में एक एड छपा था जिसमें प्रेमलता को एक शख्स के साथ दिखाया गया था. प्रेमलता के वकील ने अदालत में फोटो और पत्र के जाली होने की अर्जी लगाई. हालांकि राहत नहीं मिली, करीब एक हफ्ते बाद प्रेमलता, कर्पूरी ठाकुर, शिवनंदन पासवान और एमएलसी इंदर कुमार के खिलाफ पटना हाइकोर्ट पहुंची. अदालत के अवमानना का आरोप लगाया. लेकिन इंदर कुमार ने पटना हाइकोर्ट को बताया कि प्रेमलता ना सिर्फ शादीशुदा है बल्कि उसके दो बच्चे भी हैं. यही नहीं जनशक्ति अखबार में विज्ञापन की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए इंदर कुमार ने कहा कि सच तो यह है कि राजनीतिक षड़यंत्र के तहत ठाकुर को फंसाया गया है. उनके चरित्र हनन की कोशिश की गई है.

इंदर कुमार ने लेटर को कोट करते हुए कहा था कि प्रेमलता ने खुद माना है कि वो मिसेज वर्मा हैं ना कि उनकी शिष्या. जबकि पहले खुद को वर्मा का शिष्या बताया था. यही नहीं उन्होंने यह भी कहा था इमरजेंसी के दौरान ठाकुर को वित्तीय मदद देने के लिए अपने घर को नहीं बेचा था. इंदर कुमार की दलील पर जस्टिस बी पी सिन्हा और जस्टिस एस एस हसन ने कंटेम्प्ट प्रोसिडिंग को खारिज कर दिया था. लेकिन प्रेमलता ने सीजेएम के कोर्ट में मानहानि का केस दायर किया. लेकिन गृह मंत्रालय ने पब्लिक इंटरेस्ट का हवाला देकर केस को आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी. और इस तरह से कर्पूरी ठाकुर बेदाग बरी हो गए.