बापू की बच सकती थी जान ! जानें पूर्व न्यायधीश का वह खुलासा

 

आज से 76 साल पहले 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर नाथूराम गोडसे ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया। पुलिस ने नाथूराम गोडसे और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया । और बाद में कोर्ट ने गोडसे और नारायण आप्टे को फाँसी की सज़ा सुनाई। जबकि विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किस्टया, गोपाल गोडसे और दत्तात्रेय परचुरे को आजीवन क़ैद की सज़ा सुनाई गई। लेकिन क्या बापू की हत्या को रोका जा सकता था।

सही सुना आपने बापू की हत्या के पीछे की वजह पुलिस की सबसे बड़ी लापरवाही को माना जाता है। और यह बात इसलिए भरोसे लायक है क्योंकि खुद कोर्ट में जज ने गोडसे और दूसरे आरोपियों को सजा सुनाते वक्त यह बात कही थी।

फैसला सुनाते वक्त जज ने क्या कहा

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार सजा सुनाने के लिए जज आत्माचरण कोर्ट रूम में पहुँचे। तो सजा सुनाने के बाद उनकी टिप्पणी बेहद अहम थी। जज ने फ़ैसले के बाद कहा था कि पुलिस ने 1948 में 20 से 30 जनवरी के बीच जमकर लापरवाही की। मदनलाल पाहवा की गिरफ़्तारी के बाद दिल्ली पुलिस के पास गांधीजी की हत्या की साज़िश को लेकर पर्याप्त जानकारी थी और मदनलाल ने साज़िश को लेकर बहुत कुछ बता दिया था। इसके बावजूद गांधी जी की हत्या हुई।

असल में गांधी जी की हत्या कोई अचानक नहीं हुई थी। जिस तरह जज आत्माचरण ने पुलिस को लेकर टिप्पणी की थी, उससे यह कहा जा सकता है कि आज़ाद भारत में पुलिस की लापरवाही की कहानी गांधी की हत्या से ही शुरू होती है। कई लोग तो यह भी मानते हैं कि गांधी की हत्या होने दी गई।

ऐसा दावा है कि साजिशकर्ताओं की प्लानिंग गांधी की हत्या 30 जनवरी को नहीं बल्कि 20 जनवरी को करने की थी। गवाही और जांच में जो पता चला उसके अनुसार 19 जनवरी को कुल सात में से तीन षड्यंत्रकारी नाथूराम विनायक गोडसे, विष्णु करकरे और नारायण आप्टे बिड़ला हाउस गए और प्रार्थना सभा की जगह का मुआयना किया।

30 नहीं 20 जनवरी था हत्या का दिन

असल 20 जनवरी को नाथूराम गोड़े की तबीयत ख़राब हो गई लेकिन चार लोग बिड़ला भवन गए और वहाँ की गतिविधियों को समझा.। इसके बाद ये सभी वापस चले गए और दोबारा शाम पौने पाँच बजे ये बिड़ला भवन पहुँचे। बिड़ला भवन की दीवार के पीछे से मदनलाल पाहवा ने प्रार्थना सभा में बम फेंका. मदनलाल को मौक़े पर ही गिरफ़्तार‍ कर लिया गया. उसके पास से हैंड ग्रेनेड भी बरामद हुआ। तीन अन्य भीड़ का फ़ायदा उठाकर भाग गए। उस दिन ये चारों नाकाम रहे लेकिन इसके दस दिन बाद गांधी जी के जीवन का अंतिम दिन आ गया।

20 जनवरी को बम फेंकने की ख़बर अगले दिन अख़बारों में छपी । तब टाइम्स ऑफ इंडिया से एक पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा था, “बम शक्तिशाली था और इससे कई लोगों की जान जा सकती थी. हैंड ग्रेनेड महात्मा गांधी को मारने के लिए था । इसके बाद बॉम्बे क्रॉनिकल में रिपोर्ट छपी कि मदललाल पाहवा ने बम फेंकने का गुनाह क़बूल लिया है और कहा कि वो महात्मा गांधी के शांति अभियान से ख़फ़ा हैं इसलिए हमला किया। इतनी सारी जानकारी होने के बावजूद पुलिस ने बापू की सुरक्षा चाक चौबंद नहीं की । नतीजा यह हुआ कि बापू गोडसे की गोलियां का शिकार हो गए।