पैसा रूस का, लोन यूक्रेन को लेकिन EMI भरेंगे पुतिन, अमेरिका की गजब की चालाकी
Ukraine Loan : हर बार की तरह जी-7 समिट भी इस बार सुर्खियों में रहा। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, इटली और यूरोपीय यूनियन के नेता एक मंच पर थे। हर बार की तरह इस बार भी वैश्विक मुद्दों पर चर्चा, द्विपक्षीय बैठकें और करार एवं समझौते हुए लेकिन जिस डील ने सबसे ज्यादा ध्यान अपनी और खींचा। वह रूस-यूक्रेन युद्ध पर हुआ फैसला है। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी खास रही। अलग-अलग राष्ट्र प्रमुखों के साथ उनकी बैठकें और मुलाकातों ने भारत की अतंरराष्ट्रीय छवि को और मजबूत किया। इस वार्षिक सम्मेलन में सबसे बड़ा फैसला यूक्रेन को लोन देने पर हुआ।
यूक्रेन को मिलेगा 50 अरब डॉलर का लोन
रूस के खिलाफ जंग लड़ने और अपने नुकसान की भरपाई के लिए जी -7 के देश, यूक्रेन को 50 अरब डॉलर का लोन देने के लिए तैयार हुए लेकिन खास बात यह है कि इतनी भारी-भरकम लोन का भुगतान वे अपनी जेब से नहीं बल्कि रूसी की संपत्तियों पर जो ब्याज इकट्ठा हुआ है उससे होगा। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि यूक्रेन को पश्चिमी देशों से लोन मिलेगा 50 अरब डॉलर लेकिन इसकी किश्त या कहिए ईएमआई रूस भरेगा यानी रूस का पैसा उसके ही खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल होगा।
यूक्रेन के सैनिकों को ट्रेनिंग देगा अमेरिका
यहां एक बात और है, इस लोन के बारे में बताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वह रूस को याद दिला रहे हैं कि यूक्रेन की सहायता करने में पश्चिमी देश पीछे नहीं हटेंगे। वे उसकी मदद करते रहेंगे। इसी सम्मेलन में यूक्रेन और अमेरिका के बीच 10 वर्षों के लिए द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता भी हुआ है जिसे जेलेंस्की ने ऐतिहासिक बताया। इस समझौते के तहत अमेरिका रूस से जंग लड़ने के लिए यूक्रेन के सैनिकों को ट्रेनिंग देगा। व्हाइट हाउस ने इस डील के बारे में कहा है कि वाशिंगटन यानी अमेरिका और कीव मतलब यूक्रेन दोनों मिलकर यूक्रेन की सैन्य ताकत बाढ़ाएंगे। देश के रक्षा उद्योग को मजबूती देने के साथ-साथ आर्थिक रूप से उसे दोबारा खड़ा करने और ऊर्जा सुरक्षा कायम करने की दिशा में काम करेंगे। यानी कि लोन का मोटा पैसा जो कि रूस का है वह अमेरिका के पास जाएगा। जाहिर है कि रूस का यह पैसा यूक्रेन होते हुए वापस अमेरिका के पास जाएगा यानी कि अमेरिका के दोनों हाथों में लड्डू हैं।
पुतिन ने कहा-इसकी सजा मिलेगी
जी-7 और यूक्रेन के बीच हुए इस डील पर रूस की करीबी नजर थी। जैसे ही अपनी संपत्तियों पर लोन की बात सामने आई, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आग बबूला हो गए। उन्होंने साफ-साफ कहा कि यह चोरी है और चोरी करने वालों को सजा मिलेगी। अपना पैसा यूक्रेन को देने पर मास्को ने कहा है कि यह क्रिमिनल एक्ट है। जाहिर है कि रूस अब चुप नहीं बैठेगा। वह भी जवाबी कार्रवाई करेगा। रिपोर्टों की मानें तो यूरोपीय देशों का रूस में 33 अरब पौंड की संपत्तियां हैं।अपने इस कदम के बाद अमेरिका ने यूरोपीय संपत्तियों को जब्त करने के लिए रूस को मौका दे दिया है।
रूस की संपत्तियों पर मिल रहा 3 अरब डॉलर ब्याज
हम यहां बता देते हैं कि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमलों के बाद पश्चिमी देशों ने अपने यहां रूस की संपत्तियां जब्त कर लीं। अपने बुरे दिनों के लिए कई सारे देश, दूसरे देशों या विकसित देशों में अपनी संपत्तियां बनाते हैं। उनके बैंकों में गोल्ड और पैसे रखते हैं ताकि मुसीबत के दिनों में वे इन संपत्तियों और इस्तेमाल कर सकें। रूस ने भी यही सोचकर अपनी संपत्तियां यूरोपीय देशों में बनाई थीं और उनके बैंकों में पैसे जमा किए थे। लेकिन युद्ध शुरू होने पर उसकी इन सभी संपत्तियों को पश्चिमी देशों ने जब्त कर लिया। जब्त की गईं रूसी संपत्तियों की कीमत करीब 325 अरब डॉलर है और इन संपत्तियों पर हर साल करीब 3 अरब डॉलर का ब्याज मिल रहा है।
आपक दोस्त आगे चलकर दुश्मन हो सकता है
रूसी संपत्तियों को जब्त करने और उसका पैसा लोन के रूप में यूक्रेन को देने की डील ने नई बहस को जन्म दे दिया है। बहुध्रवीय हो रही दुनिया में वैश्विक समीकरण तेजी से बदल सकते हैं। आज जो आपका दोस्त है हितों का टकराव होने पर आपका दुश्मन हो सकता है। चीन और पाकिस्तान, भारत के दुश्मन देश हैं। मान लीजिए युद्ध होने की सूरत में पश्चिमी देश प्रतिबंध के नाम पर भारत की संपत्तियां भी सीज कर सकते हैं। ऐसा इसलिए कि भारत ने भी बड़ी मात्रा में गोल्ड विदेशों में रखा है। गत मई महीने में भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI ने ब्रिटेन में रखे 100 टन गोल्ड वापस मंगवाया है। रिपोर्टों के मुताबिक 308 टन सोना भारत में ही रखा गया है जबकि करीब 413 टन गोल्ड विदेश में है।
ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत
जाहिर है कि रूसी संपत्तियों का पैसा यूक्रेन को देने वाला अमेरिकी फैसला भारत जैसे देशों के लिए एक सबक की तरह है। अभी तो अमेरिका भारत को अपना रणनीतिक साझेदार बताता है। चीन के खिलाफ साथ भी देता है। रक्षा, प्रोद्यौगिकी सहित कई क्षेत्रों में वह सहयोग भी कर रहा है लेकिन सवाल यह है कि युद्ध, मुसीबत या हितों का टकराव होने पर अमेरिका और पश्चिमी देश प्रतिबंध के नाम पर क्या भारत की परिसंपत्तियां जब्त नहीं करेंगे, इसे ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है।
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