Sandeshkhali: संदेशखाली की महिलाओं को न्याय का इंतजार, ममता बनर्जी दिखाएंगे सिंगूर जैसा तेवर
Sandeshkhali X-Ray: उसे सत्ता का नशा ऐसा है कि वह वहशी हो चुका है। और उसकी निगाहें हर वक्त मजबूर, गरीब लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बनाने को बेताब रहती हैं। राह चलते भी वह महिलाओं और लड़कियों को स्कैन करता है। सत्ता का गुरूर इतना हावी हो चुका है कि कानून और समाज का डर ही नहीं रह गया। जी हां हम बात कर रहे उस संदेशखाली की, जो इन दिनों चर्चा में हैं। पश्चिच बंगाल का यह छोटा सा कस्बा चर्चा में 8 और 9 फरवरी को तब आया जब वहां की महिलाओं ने शाहजहां शेख , शिबू हजरा और उत्तम नाम के तीन नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। महिलाएं झाडू और डंडा लेकर सड़कों पर उतर पर आई और चीखते चिल्लाते हुए नारे लगाती रही कि शाहजहां शेख शिबू हजरा और उत्तम उनका सत्ता के दम पर बरसों से उनका यौन शोषण कर रहे हैं। महिलाओं का सब्र का बांध इस तरह टूटा था कि उन्होंने गुस्से में आरोपियों की कई संपत्तियों को आग भी लगा दी।
शायद इसी से वह अपने अपमान की आग को बुझाना चाहती थीं। महिलाओं के आरोप इतने गंभीर और भयावह थे कि सुनकर रोंगेट खड़े हो जाए, उनका कहना था कि ये तीनों उनके घर वालों के सामने यौन शोषण करते रहे हैं और चुप रहने के लिए पैसे देने से लेकर जान से मारने तक की धमकी देते हैं। और यह सिलसिला एक दो दिन का कुछ घटनाओं का नहीं है बल्कि यह बरसों से चला आ रहा है। उनका आरोप है तीनों नेताओं के तृणमूल कांग्रेस से जुड़े होने की वजह से पुलिस भी कार्रवाई नहीं कर रही है।
खुद को खुदा समझने लगा
2024 की यह शर्मनाक कहानी हमें उन दौरों की याद दिलाती है, जब राजा-महाराजा, बादशाहों-शहंशाहों का दौर था, जहां सत्ताधारियों के आगे इंसानों की कोई कीमत नहीं थी। लेकिन यह तो न्यू इंडिया है, लोकतांत्रिक भारत है। फिर वह एक राज्य में जहां की मुखिया खुद एक महिला हैं। वहां यह खेल बरसों से कैसे चल रहा है। …….. महिलाओं की हिम्मत ने तटीय इलाके पर बसे संदेश खाली को सुर्खियों में ला दिया। इसके बाद तो वहां मीडिया, राजनीतिक दलों का जमावड़ा भी पहुंचने लगा। और मामला तूल पकड़ने पर राज्य की सरकार भी हरकत में आई। इस बीच भाजपा ने संदेशखाली के हालात पर एक डॉक्यूमेंट्री भी जारी कर दी है। जिसमें उसने पीड़ितों से बात कर वहां का सच सामने लाने का दावा किया है। मामला तूल पकड़ने पर राज्य सरकार भी कार्रवाई की बात कर रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह सब होता कैसे रहा और पुलिस ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। तो इसे समझने के लिए संदेशखाली के अर्थशास्त्र और वोटशास्त्र को समझना होगा। एक्सप्रेस-वे के दौर में भी आज भी संदेश खाली पहुंचने का यही एक मात्र रास्ता है। आप नाव से सवार होकर ही संदेशखाली पहुंच सकते हैं। यानी यह छोटा सा इलाका दुनिया की रफ्तार से मेल ही नहीं कर सकता। ऐसे में यहां के लोगों के पास जीवनयापन का जरिया केवल खेती है। और इसी मजबूरी का फायदा यहां पर माफिया उठाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी शाहजहां शेख की भी रही है। जो एक मजदूर से आज इस लेवल पर पहुंच गया कि पुलिस भी उसका कुछ नहीं कर पा रही है। और वह ईडी के भी शिंकेज में नहीं आ रहा है।
नून जले सोना फले
इस इलाके में एक कहावत फेमस है नून जले सोना फले … बस इन्ही चार शब्दों में यहां का पूरा अर्थशास्त्र छुपा हुआ है। सुमद्र के किनारे होने के कारण पानी यहां खारा है। माफिया किसानों के खेतों में जान बूझ कर खारा पानी भर देते हैं। जिससे गरीब किसानों का खेत उपजाऊ नहीं रह जाता है। फिर वह इन्हीं किसानों से उनके खेतों में तालाब बनाकर मछलीपालन करवाते हैं। और फिर यही इन माफियाओं के कमाई का जरिया बन जाता है। शाहजहां शेख शिबू हजरा और उत्तम इसी अर्थतंत्र का हिस्सा हैं। आखिरी में एक अहम सवाल यही है कि क्या संदेशखाली की महिलाओं और उनके परिवार वालों को न्याय मिलेगा। और इसकी सबसे अहम जिम्मेदारी राज्य की मुखिया ममता बनर्जी के ऊपर है। वह तो खुद मजबूरों और पीड़ितों के खिलाफ आवाज उठाकर सत्ता के उच्च पद पहुंची हैं। उनके सिंगूर के संघर्ष कौन भूल सकता है। जिसके दम पर उन्होंने राज्य से वाम दलों को उखाड़ फेका था। एक बार फिर संदेश खाली उनके लिए वैसी ही चुनौती लेकर खड़ा है