कामयाबी की कुंजी शॉर्टकट नहीं तो और क्या ? दो मिनट में मिल जाएगा जवाब

 

Unemployment News: आधुनिकता इस दौर में अपने चरम की ओर बढ़ रहा है और हमारा अमानवीय स्वभाव इसका भरपूर सहयोग करते हुए दिख रहा है. यह दौर मुख्यतः दो बातों के आसपास घूमता नजर आ रहा हैं. पहला पश्चिमी अर्थव्यवस्था का भारत और चीन की अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भरता और दूसरा प्राकृतिक संसाधनों का अमानवीय दोहन जिसका प्रतिउत्तर प्रकृति प्रखर रूप से समय-समय पर इस आधुनिक विश्व को देती रहती है. ऐसे में कुछ भी पूर्णतः स्थिर है, ये अनुमान करना एक गलत चयन होगा. आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी समस्या है “मानव जनसंख्या” में लगातार घाती वृद्धि होना और इस समस्या के परिणाम स्वरूप जो चुनौती आज उत्पन्न हुई है उसमे से एक है “अपर्याप्त रोजगार” के अवसर और व्यवस्था.

भारत में बेरोजगारी की वजह

वैसे तो बेरोजगारी के बहुतायत कारण होते हैं पर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी की हमारे भारत में इसके मूलतः तीन ही कारण है. “प्रशानिक” और “शिक्षा” व्यवस्था पहले दो प्रमुख कारण हैं जो जगजाहिर हैं. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है किसी व्यक्ति के भीतर काबिलियत उत्पन्न करना तथा सफलता पाने का आत्मविश्वास स्थापित करना जो कि इंग्लिश एजुकेशन एक्ट 1835, जिसे हम आज भी स्वरूप बदल कर उपयोग कर रहे है, से हो पाना असम्भव है. खासकर हम भारतीयों के लिए.

सरकारी नौकरी सफलता की परिभाषा

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है युवाओं का सरकारी नौकरी के लिए अत्यधिक आकर्षण. वैसे तो सफलता की कोई एक परिभाषा नहीं होनी चाहिए, और उसकी परिभाषा तय करने के मापदंड किसी व्यक्ति विशेष की निजी परिस्थितियों के अनुसार होने चाहिए. पर आज के तथाकथित समाज में ये बात केवल एक आदर्श विचार के जैसे लगते हैं जिसे वास्तविक जीवन में परोक्ष रूप से स्थापित कर पाना एक अपवाद ही प्रमाणित होता है.

“मानसिकता” पर निर्भर कल का भारत

बदलते दौर ने जो नई मानसिकता युवाओं में विकसित की है, उसमें सरकारी नौकरी पाना ही अंततः सफलता पाना परिभाषित होता दिख रहा है. इसी मानसिकता से आज का युवा अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अवधि को सरकारी नौकरी पाने में खर्च कर देता है. आज कोचिंग और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं ने ऐसी मानसिकताओं का जाल बुना है कि ज्यादातर युवा इसमें फंस कर रह गए है. आज जहां एक तरफ वर्तमान केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत का नारा देती दिख रही है तो दूसरी तरफ भारत का युवा सरकारी नौकरियों के चक्कर में जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय में तैयारी के नाम पर अपने आर्थिक जरूरतों के लिए अपने परिवार पर अत्यधिक निर्भर होने के लिए विवश है. भारत का वर्तमान शायद कई मायनों में सुखद दिख रहा हो पर भविष्य के सुखद होने के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है वो यही मानसिकता है.

सफलता की बदलनी होगी परिभाषा

इस चुनौती से निपटने का सबसे अच्छा उपाय स्वरोजगार हो सकता है. हालाकि, वर्तमान में सरकार कई आर्थिक योजनाओं से इसे बढ़ावा देने का प्रयास तो कर रही है पर शायद ये पर्याप्त नही है. जरूरी है मानसिकता बदलने की और युवाओं में ये विश्वास भरने की कि अगर सही तरीके से वो स्वरोजगार व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास में प्रयत्न करेंगे तो सफलता प्राप्त की जा सकती और सफलता का ये भी एक पैमाना हो सकता है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि लघु स्वप्न देखना भी एक अपराध है और अगर आप कुछ अलग हासिल करना चाहते हो तो आपको कुछ अलग करना होगा.

(प्रज्ज्वल मिश्रा एक रिसर्च स्कॉलर हैं. @PrajjvalMishra इनका “X’ हैंडल है. यह एक ओपीनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. इंडिया अड्डा न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)