स्वामी प्रसाद मौर्य का सपा से आधा तलाक, भेदभाव या असली वजह कुछ और; पढ़ें इनसाइड स्टोरी

 

Swami Prasad Maurya News: भेदभाव के मुद्दे पर ही उन्होंने सियासत में एंट्री की थी. लेकिन भेदभाव का यह शब्द उनके लिए ऐसा हथियार बना कि वो दलबदल को जायज ठहराते रहे. उनका रिश्ता कई दलों से रहा है और इस समय समाजवादी पार्टी के हिस्सा भी हैं लेकिन राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दे चुके हैं. सबसे पहले तो उस चेहरे के नाम से पर्दा उठाते हैं. वो कोई और नहीं बल्कि स्वामी प्रसाद मौर्य हैं. वैसे तो स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी के पद से तो इस्तीफा दिया है. लेकिन विधान परिषद में जमें हुए हैं.

क्या वास्तव में यह है वजह ?

सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि उन्हें भेदभाव नजर आने लगा. यह बात तो पब्लिक डोमेन में है कि वो किस तरह से हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं. जब वो इस तरह के विवादित बयान देते थे तो कहीं ना कहीं पार्टी के नेतृत्व यानी अखिलेश यादव की मौन सहमति हुआ करती थी. लेकिन एक सच यह भी था कि पार्टी के दूसरे नेता खासतौर से अगड़ी जाति के नेता मौर्य के बयान से असहज महसूस करते थे. वो यह कहते थे कि स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी का बंटाधार करने आए है, वो तो बीजेपी के एजेंट हैं. उनका मानसिक संतुलन हिला हुआ है. लेकिन अहम प्रश्न यही है कि क्या उनके इस्तीफा देने की वजह सिर्फ इतनी सी है बात कुछ और है.

क्या मानते हैं जानकार

स्वामी प्रसाद मौर्य की सियासत पर नजर रखने वाले जानकार कुछ और ही बात बताते हैं. वो कहते हैं कि यह बात सच है कि बहुजन समाज के शोषण का हवाला देते हुए मौर्य ने राजनीति का आगाज किया. उनके संघर्ष का सुखद फल भी मिला. लेकिन एक बात कोई कैसे इनकार कर सकता है कि वो किसी एक पार्टी के लिए वफादार नहीं रहे. बीएसपी से बीजेपी, बीजेपी से समाजवादी पार्टी और अब समाजवादी पार्टी से कहां यह अभी सवालों के घेरे में है. जब वो कपड़े की तरह दल बदलने की दिशा में आगे बढ़ते थे तो तर्क भेदभाव का देते थे. लेकिन क्या यह संभव है कि कोई भी शख्स अपनी पार्टी में भेदभाव का सामना करते हुए संगठन और सरकार में अहम पदों पर काबिज हो सके. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सामाजिक आधार पर दबे कुचले लोगों के लिए क्या किया आप उस पर बहस कर सकते हैं.लेकिन व्यक्तिगत पर उन्हें क्या कुछ हासिल हुआ उसे यूपी और देश की जनता अच्छी तरह से जानती है.

जानकार कहते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिस दिन राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दिया जरा उस पर गौर करिए. वो दिन 13 फरवरी का था. लखनऊ में राज्यसभा के निर्वाचन अधिकारी के दफ्तर में अखिलेश यादव के साथ तीन बड़े चेहरे थे. जया बच्चन, रामजी लाल सुमन और आलोक रंजन राज्यसभा सीट के लिए नामांकन दाखिल कर रहे थे. वो तस्वीर औरों के लिए तो साधारण तस्वीर हो सकती थी. लेकिन उसका अर्थ स्वामी प्रसाद मौर्य समझ रहे थे. स्वामी प्रसाद मौर्य को भरोसा था कि पार्टी आलाकमान उन्हें राज्यसभा का टिकट दिल्ली दरबार में शिफ्ट कर देगा. लेकिन वो सपना, हकीकत में नहीं बदल सका. अब ऐसी सूरत में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को नाराजगी दिखाने से अच्छा मौका और क्या हो सकता था.

आम लोगों की राय

इंडिया अड्डा की टीम ने जमीन पर सामान्य वोटर्स से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस फैसले के बारे में जानना चाहा. लोगों ने कहा कि ऐसे लोगों से आप वफादारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. ऐसे लोगों की विचारधारा में स्वयं का फायदा ही प्राथमिकता होती है. अगर ऐसा नहीं होता तो स्वामी प्रसाद मौर्य 2022 में जब अपना चुनाव हार गए तो उन्हें एमएलसी के ऑफर को इनकार कर देना चाहिए था. दरअसल इस तरह के लोगों को राजनीतिक दल ही बढ़ावा देते हैं. अगर राजनीतिक दल इस तरह के लोगों से मुंह फेर लें तो ये अपने आप अप्रसांगिक हो जाएंगे.