अयोध्या के बाद मथुरा-काशी का क्या ! जानें मोदी की मंडल-कमंडल राजनीति का अगला रोडमैप

 

Bjp Mathura Kashi Politics After Ayodhya:करीब 500 साल से चल रहे राम मंदिर निर्माण आंदोलन की सुखद परिणिती 22 जनवरी 2024 को प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूरी हो गई। इसके साथ विहिप, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के उस 33 साल के आंदोलन का भी पटाक्षेप हो गया, जो उसने राम मंदिर आंदोलन के लिए शुरू किया था। लेकिन अब सवाल नारे का है ये तो अभी झांकी, मथुरा-काशी बाकी है। दोनों मामले अदालत तक पहुंच गए हैं। ऐसे में भाजपा से वह हिंदू समर्थक जरूर पूछेंगे कि मथुरा-काशी का क्या होगा। तो इसका जवाब प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों से साफ तौर पर मिल जाता है, कि आने वाले दिनों में भाजपा और आरएसएस किस दिशा में बढ़ने वाले हैं।

पहले बात मोदी के भाषण की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे राम आ गए हैं. रामलला अब टेंट में नहीं बल्कि दिव्य मंदिर में रहेंगे। उन्होंने राम मंदिर को लेकर अदालत के फैसले का भी ज़िक्र किया और कहा कि न्याय के पर्याय प्रभु राम का मंदिर भी न्यायबद्ध तरीके से ही बना। कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी. ऐसे लोग भारत की सामाजिक विवेक को नहीं जान पाए।

इसी तरह मोदी ने कहा कि राम आग नहीं है, राम ऊर्जा है. राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं। ‘राम सिर्फ़ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री ने विजय से विनय तक की बात की। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसे राम मंदिर को विजय की तरह देखें लेकिन विनय का साथ न छोड़ें. मर्यादा न छोड़ें।

अगर प्रधानमंत्री के इन बयानों को राजनीतिक चश्मे से देखा जाय तो साफ है कि मोदी ने हमारे राम आए गए के जरिए यह संदेश दे दिया है कि भाजपा ने जो कहा वह पूरा कर दिखाया। और भाजपा हिंदुओं की सबसे बड़ी हितैषी है। लेकिन साथ ही मोदी को यह भी पता है कि अगर तीसरी बार उन्हें सत्ता में आना है तो उस तबके को भी अपने साथ जोड़ना होगा, जो भाजपा की कट्टर छवि को पसंद नहीं करता है। शायद इसीलिए उन्होंने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संदेश दिया है कि राम मंदिर को विजय की तरह देखें लेकिन विनय का साथ न छोड़ें। इसलिए उन्होंने कहा कि राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं।

अब संघ प्रमुख मोहन भागवत के बायना को देखें तो भी संदेश साफ नजर आता है। समारोह के दौरान भागवत ने कहा कि आज 500 साल बाद रामलला यहां लौटे हैं। रामलला के साथ भारत का स्व लौट कर आया है। इसके अलावा हमें सबको साथ लेकर चलना है, अब विवादों से बचना होगा। इसके अलावा उन्होंने राम जैसे आचरण करने की बात भी कही। इसके पहले ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कहा था कि हर जगह हमें शिवलिंग नहीं देखना चाहिए।

कमंडल राजनीति नए कलेवर में आएगी !

मोदी और भागवत के बयानों से साफ है कि भाजपा और आरएसएस मथुरा और काशी की लड़ाई राम मंदिर आंदोलन की तरह आगे नहीं बढ़ाना चाहती है। यह मुद्धा उनके समर्थकों के जरिए दबाव जरूर डालेगा, लेकिन फिलहाल दोनो संगठन समाधान का रास्ता विवाद से दूर होकर निकालने का संदेश दे रहे हैं। और अब भाजपा कमंडल की राजनीति नए नजरिए से आगे बढ़ाना चाहती है।

मंडल राजनीति में सेंध

इसी तरह मोदी सरकार ने जिस तरह कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर ओबीसी राजनीति में खलबली मचाई है, उसके परिणाम भी आने वाले दिनों में दिखेंगे। क्योंकि भाजपा कल्याणकारी योजनाओं के जरिए खुद को पिछड़े की राजनीति को लाभार्थी वर्ग में बदलने का सफल प्रयोग कर चुकी है। चाहे 2019 के लोकसभा चुनाव हो या फिर यूपी विधानसभा चुनाव और हाल ही में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में मिली जीत और वह नेतृत्व परिवर्तन, यह सभी संकेत दे रहे हैं कि भाजपा, विपक्ष के जातिगत जनगणना के हथियार को अलग तीर से साधने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है।