Electoral Bond: गुमनाम चंदा देने वाले चेहरे अब आएंगे सामने, सुप्रीम कोर्ट का क्यों चला डंडा

 

Electoral Bond Scheme:  देश की शीर्ष अदालत ने गुरुवार को ऐसा फैसला सुनाया जिससे सियासी दल सन्न रह गए। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुमनाम अकूत धन कमाने की उनकी कानूनी व्यवस्था पर एकदम से ब्रेक लग गया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने एक झटके में चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए इसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने सरकार की सभी दलीलों को खारिज करते हुए साफ-साफ कहा कि राजनीति में काले धन का प्रवाह रोकने के लिए और भी तरीके हैं लेकिन आपका यह तरीका सही नहीं है।

पैसे की जानकारी पाना जनता का हक

कोर्ट ने कहा कि जनता आपको वोट देती है। आप पर भरोसा करती है इसलिए उसे पूरा जानने का हक है कि पैसा कहां से आता है, कितनी बार आता है, कौन देता है और कहां खर्च होता है। यह पैसा गुमनाम नहीं हो सकता। इसका पूरा हिसाब-किताब देना होगा।

2019 से देना होगा हिसाब

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सियासी दलों की गुमनाम फंडिंग पर सुप्रीम कोर्ट का यह करारा प्रहार है। कोर्ट के इस फैसले की नेता भले ही मन मसोसकर तारीफ करें लेकिन कोर्ट ने उनके हजारों करोड़ रुपए की उनकी कमाई पर चोट की है उन्हें मिलने वाला यह पैसा अब बंद हो गया है। कोर्ट ने कहा है कि हिसाब-किताब एक दो साल का नहीं बल्कि 12 अप्रैल 2019 से होगा। यह बताना होगा कि इन पांच सालों में चुनावी बॉन्ड्स किन-किन लोगों ने खरीदे और कितनी रकम लगाई। यह पैसा कहां गया।

13 मार्च तक ईसी की वेबसाइट पर अपलोड होगी जानकारी

देश के सबसे बड़े बैंक SBI को देश की सबसे बड़ी अदालत का आदेश मानना होगा। एसबीआई बेचे गए अपने सभी चुनावी बॉन्ड की जानकारी अब चुनाव आयोग को देगा। सरकारी व्यवस्था की हीलाहवाली और लापरवाही देखते हुए कोर्ट ने डेडलाइन भी फिक्स कर दी है। SBI को चुनावी बॉन्ड की सारी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को और आयोग को यह सारी जानकारी 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर लगानी होगी। मतलब साफ है कि वेबसाइट पर जानकारी सामने आते ही लोगों को पता चल जाएगा कि किस कंपनी, किस व्यक्ति या किस संस्था ने कब-कब, कितनी बार और कितनी रकम किसी पार्टी को दी है।

चुनावी चंदे पर सवाल खड़े हो सकते हैं

बॉन्ड पर से गोपनीयता का लबादा उतरना राजनीतिक दलों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे चेहरे भी सामने आ सकते हैं जिन पर विवाद हो सकता है या चुनावी चंदे के आकार पर सवाल खड़े हो सकते हैं। दरअसल, चुनावी बॉन्ड को लेकर याचिकाकर्ताओं ने जो शंका जताई है उससे कोर्ट भी सहमत हुआ है। फैसला सुनाते हुए उसने जो टिप्पणियां की हैं वे गंभीर हैं। कोर्ट ने कहा है कि दानदाताओं की गोपनीयता महत्वपूर्ण है, लेकिन पूरी छूट देकर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता हासिल नहीं की जा सकती।