Bharat Bandh: अब किसान भारत बंद क्यों करना चाहते हैं, जानें किसानों के दिल्ली चलो से कितना अलग
Bharat Bandh, भारत बंद ग्रामीण: एमएसपी को लेकर दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन की लड़ाई अब और बड़ी हो गई है। इसके तहत भारतीय किसान यूनियन, संयुक्त किसान मोर्चा, ट्रेड यूनियन 16 फरवरी को भारत बंद करने जा रहे है। इस बंद को किसानों और ट्रेड यूनियन ने भारत बंद ग्रामीण का नाम दिया है। किसान 16 फरवरी को अमावस्या के तौर पर मनाने का आह्वाहन कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन ने केंद्र सरकार की तरफ से पहले किसान आंदोलन के समय किए गए वादों को पूरा नहीं करने पर यह बंद बुलाया है।
भारत बंद ग्रामीण का क्या है मतलब
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने 16 फरवरी को होने वाले भारत बंद पर किसानों की रणनीति समझाते हुए कहा है कि संयुक्त किसान मोर्चा ने एमएसपी सहित अन्य मुद्दों को लेकर16 फरवरी को भारत बंद का ऐलान किया है। बंद के दौरान इसमें MSP गारंटी कानून का न बनना, बेरजोगारी, अग्निवीर, पेंशन आदि मुद्दे उठाए जाएंगे। टिकैत ने कहा है कि पहले भी किसान ‘अमावस्या’ के दिन खेतों में काम करना छोड़ देते थे। इसी तरह, 16 फरवरी का दिन किसानों के लिए ‘अमावस्या’ है। उन्हें उस दिन काम नहीं करना चाहिए और ‘कृषि हड़ताल’ का सहारा लेना चाहिए। इससे देश में एक बड़ा संदेश जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया है यह बंद ग्रामीण भारत तक सीमित होगा। और परीक्षाओं आदि को देखते हुए लोगों की परेशान नहीं होने दी जाएगी।
इसके अलावा भारत बंद सुबह 6 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चलेगा। भारत बंद के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में ट्रांसपोर्ट, प्राइवेट दफ्तर, गांव की दुकानों के साथ ही कृषि गतिविधियां और मनरेगा के तहत काम भी बंद रहेगा। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में इंडस्ट्रियल एक्टिविटी को भी बंद रखा जाएगा। लेकिन दवा, बैंक, एंबुलेंस जैसी जरूरी सेवाओं को नहीं रोका जाएगा। कुछ जगहों पर किसान सांकेतिक रूप से कुछ घंटों के लिए चक्का जाम भी करेंगे।
दिल्ली चलो से बेहद अलग रणनीति
भारतीय किसान यूनियन ने जिस तरह भारत बंद की रणनीति बताई है, उससे साफ है कि वह पंजाब-हरियाणा से चले दिल्ली बॉर्डर की ओर बढ़े किसानों के दिल्ली मार्च से बेहद अलग तरह का भारत बंद होगा। भारत बंद उग्र आंदोलन की जगह एक सांकेतिक आंदोलन है। और टिकैत ने यह भी साफ किया है कि 17 फरवरी को होने वाली किसान पंचायत में आगे की रणनीति पर भारतीय किसान यूनियन चर्चा करेंगे। टिकैत का दावा है कि इसमें यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा के किसान शामिल होंगे।
पहले किसान आंदोलन के लीडर थे राकेश टिकैत
राकेश टिकैत ने यह भी कहा है कि सरकार को एमएसपी गारंटी का कानून बना देना चाहिए। इससे फायदा यह होगा कि व्यापारी भी किसानों से एमएसपी पर खरीद करेंगे। और सरकार पर कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा। टिकैत ने कहा कि मेरा हमेशा से कहना है कि बातचीत से इस मुद्दे का हल निकलना चाहिए। टिकैत के रूख से साफ है कि अभी वह पहले किसान आंदोलन जैसा रूख नहीं अपनाना चाहते हैं।
क्या किसानों के लिए दूसरा मॉडल संभव नहीं
एमएसपी के अलावा दूसरे मॉडल को समझने के लिए कुछ सवालों को समझना जरूरी है। पहला यही कि क्या कोई कार कंपनी अपनी कार की कीमत तय करने के लिए सरकार के रेट इंतजार करती है।
क्या कोई आटा, बिस्कुट, टॉफी, शैम्पू बनाने वाली कंपनी कीमत तय करने के लिए सरकार के रेट का इंतजार करती हैं।
क्या टीवी, फ्रिज, एसी, बाइक, स्कूटी, कपड़ा बनाने वाली कंपनी कीमत तय करने के लिए सरकार के रेट का इंतजार करती हैं।
इसका सीधा जवाब- नहीं है, कंपनियां जो दाम करती हैं, तो ग्राहक अपनी जेब के अनुसार उसे खरीदता है। तो क्या किसानों को यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए। वह क्यों सरकार की मंडियों यानी APMC में जाकर अपनी फसल बेचें। खैर यह ऐसा सवाल है जो बड़े कृषि सुधारों को लागू करने की वकालत करता है। लेकिन ऐसा करना राजनीतिक संघर्ष को दावत देना है। कुछ इसी तरह के सुधार की कोशिश मोदी सरकार कर चुकी है और उसके बाद 13 महीने तक किसान आंदोलन चला था और उसके आगे मोदी सरकार झुकने को मजबूर हुई थी।