ये किसान आलू से कमाता है 2-4 करोड़, जानें कैसे बना मिसाल

 

Hathras Farmer Baldev Singh: आज के दौर में जब पंजाब-हरियाणा के किसान MSP को लेकर सड़कों पर हैं। और वह खेती को घाटे का सौदा बता रहे हैं। वहीं देश में औसतन एक किसान मुश्किल से महीने में 10 हजार रुपये की कमाई करता है। ऐसे में हाथरस के किसान बलदेव सिंह की कहानी जान, आप यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे, कि भारत में ऐसे भी किसान होते हैं क्या.. जी हां बलदेव सिंह उन प्रोग्रेसिव किसानों में से एक हैं, जो न MSP की गारंटी चाहते हैं और ना हीं वह पीएम किसान सम्मान निधि की राशि लेते हैं। बलदेव इस बात को लेकर परेशान भी नहीं है कि उनकी खेती से कमाई कैसे होगी। बलदेव की इस बेफिक्री का राज उनकी खेती के तरीके में छुपा हुआ है। वह केवल आलू के सीजन में 2-4 करोड़ रुपये की कमाई कर लेते हैं। जी हां सही सुना आपने, उन्होंने खेती में वैज्ञानिक पद्धति और बेहतर टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से उसे फायदे का बिजनेस बना दिया है।

800 बीघे जमीन के मालिक

बलदेव के पास 800 बीघे जमीन है। और उनकी कमाई का राज आप उनके खेती के तरीके से देख सकते हैं। सबसे पहले बेहतर उत्पादन के आलू के किस्म पर उन्होंने फोकस किया। वह मेरठ से बेहतरीन किस्म का आलू लेकर आए। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र से भी संपर्क में रहते हैं। जिससे नए बीज, उन्नत किस्में की जानकारी से वह अपडेट रहते हैं। इसके अलावा वह आलू की बुआई और खुदाई के लिए बेहद मॉडर्न मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह बुआई के लिए 25 लाख की मशीन का यूज करते हैं। वहीं खुदाई के लिए वह जर्मनी मेड 11 लाख की मशीन का यूज कर रहे हैं।

हाई टेक मशीनों का फायदा यह है कि न केवल खेत से आलू निकालना आसान हो जाता है। बल्कि आलू को भी खुदाई के दौरान नुकसान नहीं होता है। इसके अलावा बलदवे सिंह का कहना है कि इसे लेबर कॉस्ट भी कम होती है।

MSP की गारंटी नहीं ये चाहते हैं

किसान बलदेव सिंह बलदेव से जब हमने कहां कि आप दूसरे किसानों को खेती को बेहतर बनाने के लिए क्या संदेश देना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि देखिए सबसे अहम बात जमीन और पैसा है। फिर उन्होंने एक चीज और बताई जो किसानों के बेहद काम आ सकती है, वह है फसलों का विविधिकरण और प्रयोग। बलदेव पारंपरिक फसलों की जगह तरह-तरह की फसल उगाते हैं

कृषि सुधारों और एमएसपी की मांग पर बलदेव कहते हैं कि एमएसपी से किसानों का भला नहीं होने वाला है। मैं तो चाहता हूं कि हम भी कारोबारियों की तरह खुद अपनी फसल बाजार में बेचना चाहते हैं। रेट हम खुद तय करना चाहते हैं। जिससे कि खेती किसान की मर्जी से चले..