Republic Day Special: दाल-खाद्य तेल में हम क्यों नहीं आत्मनिर्भर,जिम्मेदार कौन किसान या नीतियां

 

Pulses And Edible oil India Import Dependency : एक तरफ तो हम 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनने और दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने के दहलीज पर है। और गाहे-बगाहे सरकार के तरफ से यह बता ही दिया जाता है कि जल्द ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला है। लेकिन एक ऐसी चीज है जिसको लेकर आज भी आत्मनिर्भरता कोसों दूर है। सुन कर भी यह अजीब लगता है कि भारत जैसा कृषि प्रधान देश, जिसने हरित क्रांति से खाद्यान्न में 50-60 साल पहले आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है, वह अपने देश की जरूरतों के लिए दाल और खाने का तेल भी पूरा नहीं कर पा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि इसका जिम्मेदार कौन है, क्या इसके लिए किसान जिम्मेदार हैं, तो दाल और खाद्य तेल का उत्पादन नहीं कर रहे हैं, या फिर ऐसी नीतियां हैं जो किसानों को दाल और खाद्य तेल के उत्पादन के लिए प्रेरित नहीं कर रही हैं। तो आइए सबसे पहले कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं…

पहले दालों पर नजर डालते हैं

भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, आयातक और उपभोक्ता है। आंकड़ों के मुताबिक भारत अपनी दालों की जरूरत का 10 से 12 फीसदी आयात से पूरा करता है। वित्त वर्ष 2022-23 में 24.96 लाख टन दलहन का आयात किया गया था। भारत में सबसे अधिक दालों का उत्पादन मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में होता है। जबकि अरहर का उत्पादन महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना में होता हैं। कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार चालू खरीफ सीजन में दलहन उत्पादन 71.18 लाख टन रहेगा। जबकि जो पिछले साल यह 76 लाख टन था। है। खरीफ सीजन में यह पिछले 6 साल का सबसे कम दालों का उत्पादन है।

अब खाने के तेल का हाल

भारत दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक देश है। यह अपनी 60 प्रतिशत जरूरत आयात से पूरी करता है। भारत मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से पाम ऑयल खरीदता है जबकि यह अर्जेंटीना और ब्राजील से सोयाबीन और सूरजमुखी तेल का आयात करता है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार, नवंबर 2023 में खाद्य तेल का आयात 11.48 लाख टन था। वहीं गैर-खाद्य तेल का आयात 12,498 टन था। तेल वर्ष 2023-24 (नवंबर-अक्टूबर) के पहले महीने में वनस्पति तेलों का आयात 11.60 लाख टन हुआ। भारत में औसतन हर साल 23.5-24 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत होती है। यानी हम केवल 10 लाख टन के करीब ही उत्पादन कर पाते हैं।

सरकार आयात पर निर्भर

दोनों फसलों के लिए जरूरत के अनुसार उत्पादन न होने के कारण सरकार आयात पर निर्भर है। और वह महंगाई पर लगाम कसने के लिए सस्ते आयात को बढ़ावा देती है। इसे इस तरह समझिए केंद्र सरकार ने खाद्य तेल के आयात पर लागू सीमा शुल्क में कटौती मार्च 2025 तक बढ़ा दी । इस समय कच्चे पाम तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल और कच्चे सोया तेल पर आयात शुल्क 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है। कीमतों को नियंत्रण करने के लिए सरकार ने यह कदम उठा दिया है।

इसी तरह रिफाइंड सोयाबीन ऑयल और रिफाइंड सनफ्लॉवर ऑयल पर 12.5 फीसदी और क्रूड पाम ऑयल पर 7.5 फीसदी आयात शुल्क है। जबकि मसूर आयात शुल्क मुक्त है।

यही हाल दालों पर है, आयातक बिना किसी प्रतिबंध के उड़द और तूअर यानी अरहर का आयात साल 2025 तक कर सकेंगे।

सस्ते आयात से देसी धंधे ठप

एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सस्ता आयात बढ़ने का असर देसी तेल पेराई मिलों पर हुआ है, और उनका कामकाज ठप हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार देसी तिलहन किसानों की उपज मंडियों में खप नहीं रही है। इसका असल तेल मिलों के काम करने वाले लोगों के रोजगार पर पड़ा है।

इसी तरह अरहर का उत्पादन कम होने की वजह बुआई के रकबे में गिरावट मानी जा रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2022 में देश में 42 लाख हेक्टेयर में अरहर लगाई गई थी, जबकि इससे पिछले साल यानी 2021 में 47.55 लाख हेक्टेयर में अरहर की बुआई की गई थी। अब सरकार 2027 तक दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

सिंपल बात कमाई होगी तो उत्पादन बढ़ेगा

किसानों की बेरूखी की वजह हाल ही में खुद सहकारिता मंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम में बताई। उन्होंने कहा कि कई बार दलहन उत्पादक किसानों को सटोरियों या किसी अन्य स्थिति के कारण उचित दाम नहीं मिलते थे, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान होता था। इसके कारण वे किसान दलहन की खेती करना पसंद नहीं करते थे। किसानों को आकर्षित करने के लिए हाल ही में सरकार ने दाल किसानों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल लांच किया है। इसके तहत जो किसान उत्पादन करने से पूर्व ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराएगा, उसकी दलहन को एमएसपी पर शत-प्रतिशत खरीद कर लिया जाएगा। फसल आने पर अगर दाम एमएसपी से ज्यादा होगा तो उसकी एवरेज निकाल कर भी किसान से ज्यादा मूल्य पर दलहन खरीदने का एक वैज्ञानिक फार्मूला बनाया गया है।

जाहिर है सरकार भी जानती है कि दाल उत्पादक किसानों को उचित दाम नहीं मिलने के कारण वह खेती से दूर हैं। इसी तरह तिलहन को लेकर किसानों के सामने भारत सूक्ष्म सिंचाई, गुणवत्तापूर्ण बीज, विपणन बुनियादी ढांचा प्रमुख अवरोध हैं। भारत में तिलहन का सिंचित क्षेत्र का कवरेज केवल 27.8 प्रतिशत है, जबकि सभी फसलों का यह 60 फीसदी है। इसी तरह प्रमुख तिलहनों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज कई फसलों की औसत विश्व उपज से 50 प्रतिशत कम है। तो साफ है कि समस्याएं कहीं और हैं। और जब तक इसे आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं बनाया जाएगा, तक आत्मनिर्भरता कोसों दूर है।