कैसे रेखा ने करियर को आगे बढ़ाने के लिए मीडिया को साधा? बिंदास बयान देकर मचाती थीं सनसनी
Actress Rekha: हाल ही में एक इंटरव्यू में ऋचा चड्ढा से जब ट्रॉल्स के बारे में एक सवाल पूछा गया तो उनका कहना था के चंडीगढ़ में बैठ कर चिंटू क्या सोच रहा है उसके बारे में सोचना ही क्यों? शायद ऐसी ही सोच से कभी रेखा भी प्रेरित रही होंगी तभी वो 70-80 के दशक में ही प्रेस को बिंदास बयान दिया करती थीं और हमेशा सुर्खियों में बनी रहती थीं। उस दौर में जहां एक तरफ जया भादुड़ी जैसी अभिनेत्री अपने अभिनय का लोहा मनवा रही थीं (जो कि रेखा कि पड़ोसन भी हुआ करती थीं) वहीं रेखा औसत दर्जे की फिल्में करते हुए भी अपने बेबाक बयानों के लिए ज्यादा सुर्खियां बटोर रही थीं।
मीडिया की ताकत समझ चुकी थीं रेखा
पारिवारिक मजबूरियों की वजह से फिल्मों का रुख करने वाली रेखा मानों समझ गईं थीं कि प्रेस को यदि साध लिया तो आगे का रास्ता अपने आप आसान हो जाना है। आज के सोशल मीडिया और पीआर के दौर में भी प्रेस का इस्तेमाल करने के मामले में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता।
रिश्ते, प्रेम, शादी पर बेबाकी से बोलती थीं
उस वक्त की अभिनेत्रियों की भीड़ में ये ना सिर्फ दिखने में अलग थीं बल्कि स्वभाव में भी बिलकुल अलग। पहली बार एक ऐसी नायिका सामने थी जो एकदम बेबाक और पूरी साफगोई से अपने रोमांटिक रिश्तों और स्वतंत्र प्रेम एवं शादी किए बगैर बच्चा पैदा करने जैसे मुद्दों पर खुलकर बात करती थीं। हालांकि, बिल्कुल बिंदास और बेखयाल रहने वाली रेखा जब अपने पेशे के प्रति संजीदा हुई तो फिर इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। खुद पर काम किया। लंदन जाकर मेकअप के गुर सीखे। अपना अलग लुक और स्टाइल विकसित किया।
महानायक से मिलने के बाद अभिनय में आई गंभीरता
अभिनय करना और फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनना इनकी प्राथमिकता कभी नहीं रही। बावजूद इसके अभिनय की बारीकियों पर ध्यान देने के साथ ही इन्होने हिंदी, उर्दू, और अंग्रेजी सीखने पर भी ध्यान दिया। कहा जाता है कि ये बदलाव अचानक नहीं आया। रेखा के जीवन में यूं तो बहुत से पुरुष आए लेकिन अपने पेशे के प्रति संजीदगी उनके अंदर महानायक से मिलने के बाद ही आई।
फिर मीडिया से दूरी बनाती गईं
अपनी जिंदगी और रिश्तों में इतने सारे उतार-चढ़ाव देखने और मानसिक तनाव झेलने के बाद भी रेखा मैदान में डटी रहीं और घर, कलयुग, आस्था, जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों को चकित करती रहीं। बस धीरे-धीरे इतना हुआ कि जिस प्रेस को उन्होंने अपना साथी बना लिया था, उससे दूरी बनाती गईं और अब वो गाहे-बगाहे ही प्रेस का सामना करते हुए दिखती हैं।