कंगना ने खुद लिखी बॉलीवुड में अपनी सफलता की पटकथा, ऐसे नहीं कहलाईं ‘क्वीन’

 

Kangana Ranaut: एक गीत है, ‘औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया’, कंगना को लोकसभा उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा के साथ ही जिस तरह के बयान और सोशल मीडिया पर जिस तरह के पोस्ट आए, उनसे जाहिर है कि औरतों ने भी औरतों को बाजार देने में कोई कसर आज भी बाकी नहीं छोड़ी है। आज भी इसलिए कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में पढ़े-लोखे नामचीन लोग भी अगर ऐसे ओछे बयान देने से बाज नहीं आएंगे तो और किसी से अपेक्षा करने का कोई औचित्य ही नहीं बचता।

…तो क्या इस तरह की बयानबाजी होती?

एक जहीन सी संपादक भी कंगना और मंडी में ‘भाव’ का सम्बन्ध ढूंढती दिख रही हैं। एक नेता, जिनकी आलाकमान खुद निकृष्टम बयानबाजी का शिकार रही हैं, आज भी घटिया से घटिया मीम उनके ऊपर बनते और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की कक्षाओं में घूमते रहते हैं, की सोच भी इस भाव के दायरे से बाहर नहीं निकली। क्या किसी अभिनेता को टिकट मिला होता तो इस तरह की बयानबाजी होती?

अपनी अलग पहचान बनाई

कंगना एक बेहतरीन अदाकारा हैं। किशोरावस्था में ही बॉलीवुड का रुख करने वाली कंगना ने वहां भाई भतीजावाद से पंगे लिए, बगैर खान तिकड़ी के साथ काम किए अपनी पहचान बनाई और एक से बढ़कर एक अच्छी फिल्मे की। जिस तरह अपने दम पर उन्होंने बॉलीवुड में एक मुकाम हासिल किया वह बिरले ही कर पाते है।

आसान नहीं रही कंगना की बॉलीवुड की यात्रा

हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर मंडी से निकलकर बॉलीवुड पर छा जाने तक की उनकी यात्रा आसान नहीं रही हैं। गौरतलब है कि बगैर किसी ‘खान’ ‘जौहर’ या किसी भी फिल्मी परिवार या डायनेस्टी की छत्रछाया के उन्होंने यह सफलता हासिल की है। अपनी सफलता की पटकथा उन्होंने खुद लिखी है। यह भी ध्यान देने वाली बात है की फील इंडस्ट्री में आने के लिए जो पारम्परिक रस्ते मसलन मॉडलिंग या टीवी हैं, कंगना ने उनका रुख भी नहीं किया। वो सीधे मुंबई ऐन और फिल्मों में एंट्री ली। अगर उनके पास कुछ था तो उनका अदम्य आत्मविश्वास, जो की अब शायद अति आत्मविश्वास में तब्दील हो चूका है, जिसकी बदौलत उन्होंने सफलता की सीढियां चढ़ीं।

बॉलीवुड में अपनी उपस्थिति मजबूत की

कंगना की असली शक्ति ऐसी भूमिकाएं चुनने की उनकी क्षमता में निहित है जो भारत के बदलते सामाजिक परिदृश्य को दर्शाती हैं। तनु वेड्स मनु और क्वीन, पंगा जैसी फिल्में उदाहरण हैं। विशाल भारद्वाज और विकास बहल जैसे व्यावसायिक रूप से सफल लेखकों के साथ काम करके उन्होंने अपनी स्थिति को और मजबूत किया।

चरित्र हनन करना उचित नहीं

जहां तक उनकी विचारधारा, और बयानबाजी का सवाल है, उस पर बहस की जा सकती है। उनके बड़बोलेपन पर भी सवाल खड़े किए जा सकते हैं। लेकिन इस तरह चरित्र हनन करना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। खासकर उनलोगों द्वारा जो स्त्री विमर्श और नारी मुक्ति का झंडा बुलंद किये रहते हैं। इस तरह की बयानबाजी उनके खुद के चरित्र के खोखलेपन को दर्शाती है।