अब मैं भी ‘समीक्षक’, OTT-सोशल मीडिया ने हर एक को दिया मौका

 

OTT and Bollywood films : आजकल फिल्में दो बार रिलीज हो रही हैं। एक बार सिनेमा घरों में और दूसरी बार ओटीटी पर। फिर उनकी समीक्षाएं भी दो दो बार क्यों ना हों? वो भी दो-दो बार हो रही हैं। पहली बार धुरंधर अपने खास नजरिए से खास दोस्तों के लिए, एक खास रकम लेकर एक खास तरीके से पन्ने या फिर चार इंच के स्क्रीन को काला करते हैं। एक दूसरी फौज है जो विभिन्न रेटिंग स्थलों पर जाकर अपने पसंद की या पाने विचारधारा वाली फिल्मों की रेटिंग बढ़ा देते हैं और जो कलाकार नहीं पसंद या निर्देशक नहीं पसंद या कुछ भी उनकी रेटिंग गिरा देते हैं।

लोगों को रहता है फिल्मों के ओटीटी पर आने का इंतजार

मोटे पॉकेट वाला दर्शक इन सबसे बेखबर, या बाखबर होकर पॉपकॉर्न और पेप्सी की ट्रे उठाए परिवार मल्टीप्लेक्स पंहुचकर मूवी देख और बढ़िया डिनर कर अपने पारिवारिक दायित्व का सप्ताहांत में निर्वहन कर डकार मारता हुआ घर पंहुचता है और तानकर सो जाता है। अगले पूरे सप्ताह ऑफिस की दौड़ लगाने के लिए। इधर एक पूरा वर्ग (इन पंक्तियों का लेखक भी) उन फिल्मों के ओटीटी पर आने का इंतजार करता है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चीर-फाड़ शुरू

इधर फिल्म ओटीटी पर आई नहीं कि उधर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फिल्म की फिर एक बार चीर फाड़ शुरू। अंतर इतना ही है कि इन्हे ना मोटी रकम मिलती, ना ही इनका फिल्म इंडस्ट्री वालों से कोई याराना है। इनका तो बस ये है कि ‘धुन चुराई हुई है भाई’ ‘अरे ये बॉलीवुड वाले सब नकलची’ ‘यह साउथ की है’ ‘ये हिंदी फिल्म वाले क्या जाने फिल्म बनाने की कला’ ‘साऊथ की फिल्में देखी कभी क्या आर्टिस्टिक लोग, क्या कलाकार’ इत्यादि ज्ञान भरी बातों की झड़ी लगा देते हैं।

धत! एकदम्मे बुड़बक हैं आप !

खुदा ना खास्ता फिल्म अगर थोड़ी सी थोड़ी सी भी ऐसी हो जहां फेमिनिज्म की झलक भी मिल जाए। फिर तो क्या बात, सिनेमा के क्राफ्ट की बातें गई तेल लेने, बस नारी मुक्ति की बात कर रही फिल्म से ज्यादा की उम्मीद ना पालो। बेहतरीन, पर्दा फाड़, नहीं नहीं मोबाइल का स्क्रीन फाड़ फिल्म बन गई। और क्या चाहिए आपको? धत! एकदम्मे बुड़बक हैं आप !