अपने गीतों से जिंदगी में रंग भर देते थे पंकज उधास, गजल को दी एक नई पहचान
Panjak Udhas: कल्पना करिए कि अपने परिवार की सुख समृद्धि, और बेहतर भविष्य की तलाश में आप सात समंदर पार जाएं, और वहां धोखाधड़ी का शिकार हो जाएं, मजबूरी में आपकप गैर क़ानूनी काम करना पड़े, अपराधियों की संगत में रहना पड़े, और तो और अपने घरवालों से संपर्क भी ना कर पाएं। ऐसे में क्या ही हालत होगी आपकी? घर और देश की याद कितनी सताएगी? ऐसे ही हालातों को बयां करती है पंकज उधास की गज़ल ‘चिट्ठी आई है’ फिल्म नाम के लिए जो 1986 में रिलीज हुई थी।
दिल को छू लेते थे इनके गाए गीत
आनद बक्शी द्वारा लिखे इस गीत को पंकज उधास ने दिल छू लेने वाले अंदाज़ में गाकर अमर कर दिया। पंकज उधास के गाए लोकप्रिय और उत्कृष्ट गीतों में से ये भी एक गीत है। आज भी यह गीत प्रवासी भारतियों के अनुभवों और चुनौतियों की काफी हद तक नुमाईंदगी करता है। ना सिर्फ प्रवासी बल्कि देश के अंदर ही गाँवों से शहर की तरफ भागे लोगों को भी इस गीत में अपना दर्द दिख जाता है।
‘चिट्ठी आई है’ से मिली पहचान
पंकज उधास के करियर के निर्णायक क्षणों में से एक प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ ‘चिट्ठी आई है’ करना था। इन दोनों के साथ से एक ऐसा जादुई संगीत बना जो पीढ़ियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किये हुए है।’चिट्ठी आई हैं’ की सफलता फिल्म की कहानी से आगे निकल कर एक कालजयी रचना बन गई।
यादगार गजलें गाईं
‘चिट्ठी आई है’ के अलावा पंकज उधास ने कई यादगार गजलों को अपनी आवाज दी है। ‘दिल देता है रो रो दुहाई’, चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल” ‘ना कजरे की धार’ जैसे ग़ज़ल भी इन्होने ही गाये। संगीत के क्षेत्र में इनके योगदान को देखते हुए 2006 में इन्हे पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाज़ा गया। 1980 के दशक में संगीत के क्षतिज पर उभरे कुछ प्रमुख ग़ज़ल गायकों में से एक थे पंकज उधास। मखमली आवाज़ के मालिक पंकज उधास ने गैर फ़िल्मी ग़ज़लों की समृद्धि और विविधता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पहला एल्बम ‘आहट ‘ 1980 में रिलीज हुआ
एक समय ऐसा भी था कि उनके एल्बम ट्रिपल प्लैटिनम का दर्जा हासिल करते थे। आफरीन नामका ग़ज़ल संग्रह जो 1986 में रिलीज हुआ था इसका एक उदाहरण । इनका पहला एल्बम ‘आहट ‘ 1980 में रिलीज हुआ था। पंकज उधास और उनके समकालीन ग़ज़ल गायकों ने कठिन शास्त्रीय ग़ज़ल गायन के विपरीत, सुनने में आसान, कर्णप्रिय, और लोकप्रिय शैली अपनाई।
शास्त्रीय गायकों ने इन्हें पसंद नहीं किया
हालाँकि, कुछ शास्त्रीय गायकों ने इसे बहुत सरल मानते हुए इसे पसंद नहीं किया। लेकिन उभरते शहरी मध्यम वर्ग को यह बहुत पसंद आया। यह शैली शास्त्रीय संगीत की तुलना में अधिक सुलभ थी, जिसमें संगीत का आनंद उठाने के लिए शास्त्रीय संगीत की जानकारी जरुरी नहीं थी. इसके साथ ही यह फिल्मी गीतों की तुलना में अधिक मधुर थी। इस नई ग़ज़ल ने अतीत की रोमांटिक भावनाओं को बरकरार रखा, जिससे लोगों के लिए इसका आनंद लेना आसान हो गया।
भाई मनहर उधास भी बड़े गायक
17 अप्रैल, 1951 को गुजरात में जन्मे पंकज उधास संगीत की दुनिया में अपने बड़े भाई, मनहर उधास, जो बॉलीवुड में एक स्थापित पार्श्व गायक थे, के सहयोग से आये। ग़ज़ल गायन के क्षेत्र में, पंकज उधास एक ऐसे गायक थे जिनकी मखमली आवाज़ और भावपूर्ण प्रस्तुतियों ने संगीत परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।