ईमान या इनाम की ख्वाहिश, खास मौकों पर ही क्यों जागती है अंतरात्मा

 

Rajyasabha Elections Results 2024:तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की 15 सीटों के लिए चुनाव कराए गए थे. जिसके नतीजे भी अब सामने हैं. यूपी में बीजेपी के सभी 8 उम्मीदवार, समाजवादी पार्टी के दो उम्मीदवार, हिमाचल में बीजेपी के l कैंडिडेट और कर्नाटक में कांग्रेस के तीन और बीजेपी के एक उम्मीदवार को जीत हासिल हुई. लेकिन चर्चा यूपी और हिमाचल की हो रही है. अब सवाल यह है कि यूपी और हिमाचल की चर्चा के पीछे की वजह क्या है उसे समझने से पहले यूपी में तीसरी सीट पर समाजवादी पार्टी और हिमाचल में कांग्रेस की हार को समझना होगा.

विपक्षी खेमे में हो गया खेल

यूपी में समाजवादी पार्टी के 8 विधायक बागी हो गए और उन्होंने अंतरआत्मा के आधार पर बीजेपी को समर्थन किया. और उसका नतीजा यह रहा कि आलोक रंजन चुनाव हार गए. वहीं हिमाचल में भी चुनाव से पहले कांग्रेस के कुछ बागी विधायकों की अंतरआत्मा जाग गई और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनू सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा. अब एक तरफ जहां बागी विधायक अपने काम को दिल और दिमाग की आवाज बता जायज ठहरा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने क्रॉस वोटिंग का नाम दिया है. यहां पर हम आपको क्रॉस वोटिंग या अंतरआत्मा की आवाज क्या है उसे बताएंगे.

बाध्यकारी नहीं है व्हिप

दरअसल राज्यसभा के चुनाव में विधायकों पर ह्विप की व्यवस्था बाध्यकारी नहीं होती. वो अपने मत का फैसला बेहतर उम्मीदवार के लिए कर सकते हैं. ऐसी सूरत में विधायक अपनी पार्टी के अलावा किसी और दल के उम्मीदवार पर मुहर लगा सकते हैं. अब स्वाभाविक तौर पर स्थिति यह होती है कि जो विधायक जिस दल के टिकट पर विधान भवन पहुंचा हो वो अपनी पार्टी के साथ ही खड़ा रहे. लेकिन ऐसा देखा गया है कि राज्यसभा के चुनाव में विधायक अंतरआत्मा की आवाज पर पाला बदलते रहे हैं. भारत की सियासत में इस शब्द का इस्तेमाल करीब करीब सभी राजनीतिक दलों ने मौके के हिसाब से किया है. चाहे वी पी सिंह रहे हों, चाहे अटल बिहारी वाजपेयी. चाहे अरविंद केजरीवाल या बी एस येदियुरप्पा.

बीजेपी पर आरोप

वैसे तो सियासत में संवेदना के लिए कोई खास जगह कहां होती है. लेकिन मुश्किल हालात में राजनीतिक दलों को लगता है कि वो ईमान की दुहाई दिला, ईमान की दवा पिला नतीजों को अपने पक्ष में कर लेंगे. लेकिन अपने फायदे का हथियार भारी पड़ जाता है. अब जबकि राज्यसभा के चुनावी नतीजे सामने है तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि हमने तो बागियों की पहचान के लिए ही तीसरे उम्मीदवार को उतारा था. इसका अर्थ यह है कि उनको पहले से पता था कि कुछ विधायक बगावत की राह पर सफर तय पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. समाजवादी पार्टी के नेता अब कह रहे हैं कि समय का चक्र घूमता है. बीजेपी जो कर रही है वो सही नहीं है. हम भी आगे कुछ वैसा ही कर सकते हैं. वहीं हिमाचल प्रदेश में जहां एक तरफ कांग्रेस की हार हुई है तो दूसरी तरफ सुक्खू सरकार पर भी खतरा मंडरा रहा है.