कुछ ऐसा है अलीगढ़ का मिजाज, सांसद से नाराजगी लेकिन..
Aligarh Loksabha chunav survey: अलीगढ़ के मशहूर शायर ‘शहरयार’ का शेर ‘क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में, आईना हमें देख के हैरान सा क्यूं है’ कुछ ऐसी ही तस्वीर अलीगढ़ की है. शहर की फिजा में बदलाव की कसक के बीच मोदी की गारंटी की हवा है.
लोग मौजूदा भाजपा सांसद सतीश गौतम से नाराज तो दिख रहे हैं लेकिन उन पर मोदी का असर हावी है. ऐसे में 20 लाख वोटरों वाले अलीगढ़ लोकसभा का मिजाज जानने इंडिया अड्डा की टीम जब सड़कों पर उतरी तो कई हैरान करने वाले रिपोर्ट भी सामने आई. आज जब आप हमारी इस रिपोर्ट को आगे देखेंगे तो कई सारे भ्रम टूटेंगे.
अलीगढ़ लोकसभा का इतिहास
2014 में मोदी लहर में यह सीट भाजपा के खाते में आई. दो बार से सांसद सतीश गौतम यहां से भाजपा को जीत दिला रहे हैं। लेकिन क्या इस बार फिर ऐसा ही होगा . इसे समझने के लिए हम शहर के दोधपुर इलाके में पहुंचे. दोधपुर के मिजाज के बाद जरा अलीगढ़ के राजनैतिक इतिहास पर भी नजर डालते हैं। आजादी से लेकर अब तक हुए लोकसभा चुनावों में अलीगढ़ ने राष्ट्रीय दलों से उतरे चेहरों को ही जिताकर संसद भेजा है. 7 बार महिलाएं जीती हैं. पहले दो चुनाव यहां कांग्रेस ने जीते. इसके बाद जनता दल, बसपा और कांग्रेस 1991 तक यहां जीतते रहे.
अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा 90 दशक में राष्ट्रीय स्वरूप ले चुका था और इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शुमार कल्याण सिंह का गृहक्षेत्र अतरौली भी अलीगढ़ लोकसभा सीट का ही हिस्सा है. साल 91 में उद्योगपति परिवार से आने वाली शीला गौतम ने यहां पहली बार कमल खिलाया. लगातार चार चुनावों में शीला को अलीगढ़ ने भाजपा के टिकट पर संसद भेजा.
ये है अलीगढ़ की राय
मेडिकल रोड और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इलाकों में जनता की आवाज एक अलग ही हवा का इशारा कर रही है. जो कानून व्यवस्था, सड़क-साफ-सफाई, अतिक्रमण हटाए जाने को तरजीह दे रही है। वह उस मिथक को भी तोड़ने की बात कह रहे हैं जिसमें यह बातें आती है कि मुस्लिम वोटर भाजपा से दूरी बनाए हुए हैं.
इन बयानों से साफ है किअलीगढ़ की राजनीति में भगवा राजनीति और चटख होती दिख रही है। और इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन की राह बेहद मुश्किल होने वाली है. शहर के लोग स्मार्ट सिटी और सड़कों के चौड़ीकरण और कानून व्यवस्था पर मोदी और योगी को क्रेडिट दे रहे हैं. चाहे शमशाद मार्केट हो या ऊपरकोट हर जगह इस बात से लोग खुश हैं.
आखिरी पड़ाव में हम शहर के रामघाट रोड और सेंटर प्वाइंट इलाके में पहुंचे. यहां पर जो बात हमें दिखी, उससे यह साफ है कि सांसद सतीश गौतम की कार्यशैली लोगों को पसंद नहीं आ रही है। और उनके खिलाफ हर वर्ग में नाराजगी है. लेकिन मोदी और भाजपा पर भरोसा कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें वोट देना चाहते हैं.
जहां तक विपक्ष की बात है तो सपा-कांगेस गठबंधन से सत्यपाल मलिक और चौधरी बिजेंद्र सिंह का नाम रेस में है. सत्यपाल मलिक जनता पार्टी के टिकट से 1989 में यहां से चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन इस बार जनता के मिजाज से तो यह साफ है कि अखिलेश यादव के लिए इस सीट पर सपा का खाता खोलना बेहद मुश्किल है और मौजूदा सांसद सतीश गौतम से नाराजगी के बावजूद जनता मोदी की गारंटी पर भरोसा करती दिख रही हैं.