Heatwave News: हीटवेव का तांडव, श्मशानों में लगी लंबी लाइन

 

Heatwaves Death News: यह नोएडा के सेक्टर 94 का अंतिम निवास है और सामने जो तस्वीर नजर आ रही है वो जिंदगी का कड़वा सच है.हम उस सच को स्वीकार करना चाहें या उससे नजरें चुरा लें लेकिन पांच तत्वों से बने शरीर को अंत में पांच तत्वों में ही विलीन हो जाना है. आप की स्क्रिन पर जो चिताएं जलती नजर आ रही हैं वो किसी गरीब की या अमीर की ये तो पता नहीं. लेकिन आसमान से बरस रहा आग का गोला सबका दुश्मन बन बैठा है. कब किस तरह से वो काल बनकर आपको बेजान कर दे पता नहीं. लेकिन सच ये है कि हाल के कुछ दिनों में हीट वेव यानी लू से मरने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है. देश के अलग अलग हिस्सों में यह हीटवेव असहनीय दर्द दे रहा है. अब तो बस लोग सूर्य देवता से प्रार्थना कर रहे हैं कि अब अपनी आंच को थोड़ा मद्धिम कर लो. इन सबके बीच दिल्ली के निगमबोध घाट के आंकड़े कोविड दौर की याद दिलाने लगा. ऐसे में इंडिया अड्डा की टीम ने यह सोचा कि जमीनी हकीकत का जायजा लिया जाए.लेकिन सबसे पहले निगमबोध घाट और देश में लू से मौत के आंकड़े को समझिए.

vo 2 19 जून को निगम बोध घाट में कोरोना के बाद सबसे ज्यादा दाह संस्कार हुए. इस साल जून महीने में अभी तक 1101 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. वही जून 2021 में 1210, जून 2022 में 1570 और जून 2023 में 1319 शवों का अंतिम संस्कार किया गया था. इस साल यह रिकॉर्ड टूट सकता है. निगम बोध घाट पर हुए दाह संस्कार का पिछले एक हफ्ते का डाटा

14 जून – 43
15 जून- 53
16 जून -70
17 जून- 54
18 जून- 97
19 जून- 142 (रात 12 बजे तक)

vo 3 केंद्रीय स्वास्थ्य के सूत्रों के मुताबिक देश भर में लू से 114 लोगों की मौत हुई है। इस साल 1 मार्च से 19 जून के बीच 40,000 से अधिक संदिग्ध हीटस्ट्रोक के मामले सामने आए हैं। सूत्रों के अनुसार यह डेटा सभी राज्यों की ओर से अंतिम रूप से प्रस्तुत नहीं है और संख्या इससे अधिक होने की उम्मीद है।डेटा में 19 जून, 2024 को 4 मौतें और हीटस्ट्रोक के कारण सात संभावित मौतें दिखाई गई हैं।सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश (37), बिहार (17), राजस्थान (16) और ओडिशा (13) में हुई हैं। यह राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा राष्ट्रीय गर्मी से संबंधित बीमारी और मृत्यु निगरानी के तहत संकलित डेटा है। हालांकि यह जमीनी हकीकत से दूर नजर आ रही है. अब इन आंकड़ों के बीच आप को कुछ और अंदर की बात बताते हैं.

इंडिया अड्डा की टीम सेक्टर 94 के अंतिम निवास पहुंची.वहां दफ्तर में जो लोग मौजूद थे उनसे जाना कि वास्तव में हर रोज कितने शवों का दाह संस्कार हो रहा है. दफ्तर में मौजूद एक कर्मचारी ने जो बताया उससे हम लोग भी हैरान रह गए. उस कर्मचारी के मुताबिक सामान्य तौर पर अंतिम संस्कार के लिए कुल 36 प्लेटफॉर्म बनाए गए हैं. आमतौर पर हर रोज 10 शवों का अंतिम संस्कार होता है. लेकिन 18 और 19 जून का आंकड़ा बताते हुए वो परेशान सा लगा. उसने कहा कि 18 और 19 जून को तो उनके पास सेकेंड की फुर्सत नहीं थी. 18 जून को 32 और 19 जून को 31 शवों का अंतिम संस्कार हुआ. हमने फिर सवाल किया कि मरने की वजह क्या थी तो उसने बताया की लू सबसे बड़ी वजह रही.

अब यदि आप आंकड़ों को देखें तो 18 और 19 जून को आम दिनों की तुलना में तीन गुना अधिक शवों का अंतिम संस्कार हुआ. इसके साथ ही वो बताता है कि अगर 18 और 19 जून जैसी ही गर्मी बनी रही तो यकीन मानिए कि कोविड जैसा मंजर दिखेगा. अब बात जब कोविड की थी तो सवाल पूछना लाजिमी था कि उस समय कितने दाह संस्कार होते थे.

इस सवाल पर उसने कहा कि करीब 50 लोगों को हर दिन अंतिम संस्कार होता था. यानी कि अगर लू में कमी नहीं आई तो हालात और डरावने हो सकते हैं. इसके साथ ही वो यह भी कहता है कि आप एक बार पोस्टमार्टम हाउस की तरफ नजर मार लीजिए.हमने पहले यह सोचा कि अब पोस्टमार्टम हाउस जाने की क्या जरूरत है. लेकिन हम लोग वहां गए. वहां कि तस्वीरें आप को विचलित कर सकती हैं. लिहाजा वो दृश्य को नहीं दिखा रहे हैं. लेकिन यकीन मानिए हालात काफी खराब थे.

अब इतने सारे आंकड़ों के साथ हमारी टीम मुस्लिम कब्रिस्तान जा पहुंची.उस कब्रिस्तान की केयर टेकर ने बताया कि उसके यहां तो आमतौर पर लावारिश शवों को ही दफनाया जाता है.कब्रिस्तान की केयर टेकर के इस जवाब को सुनने के बाद वो लावारिश शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रही है, ऐसे में हमने सोचा कि इस सवाल का जवाब अस्पताल से बेहतर कहां मिल सकता है. इंडिया अड्डा की टीम डिस्ट्रिक्ट अस्पताल  नोएडा पहुंची. जिला अस्पताल के कैंपस में लाइन से एंबुलेंस खड़ी थीं. उसके चालक भी थे. सवाल वही कि इस समय कितने मरीजों को और किस तरह के मरीजों को अस्पताल ला रहे हैं. पहले तो वो बोलने से कतराते रहे. लेकिन बार बार पूछने के बाद कहा कि आप ऐसे समझ लो कि इस समय काम बढ़ गया है. खासतौर से 19 जून को हालत बेहद खराब थे. हर दिन वो औसतन एक से दो मरीज लाते थे. लेकिन इधर कुछ दिनों से कम से कम सात से आठ मरीजों को वो ला रहे हैं जिसमें ज्यादातर की मौत रास्ते में ही हो जा रही है. उनसे फिर एक सवाल था कि कुल कितने एंबुलेंस काम कर रही हैं. उनके मुताबिक प्राइवेट और सरकारी दोनों मिलाकर एंबुलेंस की संख्या करीब तीस है. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डिस्ट्रिक्ट अस्पताल में कुल कितने मरीज आ रहे होंगे.

बात थोड़ी और आगे बढ़ी तो हम अस्पताल के दफ्तर में भी पहुंचे. वहां बैठे कर्मचारी ने 20 जून का जिक्र करते हुए कहा कि उसने पोस्टमार्टम के लिए 20 बॉडी को भेजा है. इस जवाब के बाद जब हमने थोड़ा और कुरेदा तो जवाब दिया कि आमतौर पर पोस्टमार्टम के लिए 3 से 4 बॉडी भेजते हैं. लेकिन गर्मी और हीटवेव की संख्या बढ़ गयी. अब जब बात गर्मी और हीटवेव की हुई तो सवाल वही कि समाज का कौन सा तबका ज्यादा शिकार हो रहा है. चेहरे पर संवेदनहीनता के साथ जवाब कि गरीब और कौन.

इस जवाब के साथ ही हमारी टीम सोचने पर मजबूर हो गई कि गरीबों की मौत का कसूरवार कौन है, क्या गरीब खुद या साधन संपन्न लोग या मौसम या सरकार. इस विषय पर आप भी मंथन करिए. लेकिन सच तो यह है कि सोसायटियों में रहने वाले सुविधा संपन्न लोगों को भी सोचना होगा कि कहीं हम तो नहीं. यही नहीं सरकारों को भी सोचना होगा कि आंकड़े सिर्फ आंकड़े होते हैं. जब किसी के घर के सदस्य की मौत होती है तो उसका पूरा ताना बाना बिगड़ जाता है.