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हिचकोले खाने के बाद फिर साइकिल की सवारी पर राहुल, इस बार क्या गुल खिलाएगा यूपी के 'दो लड़कों' का साथ?

22/02/2024
12:03
हिचकोले खाने के बाद फिर साइकिल की सवारी पर राहुल, इस बार क्या गुल खिलाएगा यूपी के 'दो लड़कों' का साथ?
हिचकोले खाने के बाद फिर साइकिल की सवारी पर राहुल, इस बार क्या गुल खिलाएगा यूपी के 'दो लड़कों' का साथ?
Loksabha Election 2024 : उत्तर प्रदेश में सात साल बाद 'यूपी के दो लड़के' साथ आए हैं। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों पर सहमति बन गई है। कांग्रेस प्रदेश की 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जबकि 63 सीटों पर सपा के उम्मीदवार होंगे। हालांकि, वह कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही कर चुकी है। यूपी में सपा के साथ सीटों पर सहमति कांग्रेस के लिए राहत की बात है क्योंकि बंगाल, बिहार, पंजाब में उसे झटका लग चुका है। ऐसे में यूपी जैसे बड़े राज्य में सीट बंटवारे पर यदि समझौता नहीं होता तो इसका गलत संदेश जाता। खैर, कई बार हिंचकोले खाने के बाद कांग्रेस और सपा का गठबंधन आगे बढ़ गया है। राहुल गांधी और अखिलेश यादव साथ आ गए हैं। राहुल एक बार फिर साइकिल की सवारी करेंगे। सपा ने चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस को जो सीटें दी हैं, वे इस प्रकार हैं- अमेठी, रायबरेली, प्रयागराज, वाराणसी, महराजगंज, देवरिया, बांसगांव, सीतापुर, अमरोहा, बुलंदशहर, गाजियाबाद, कानपुर, झांसी, बाराबंकी, फतेहपुर सीकरी, सहारनपुर और मथुरा हैं।

सपा ने कांग्रेस पर दबाव बढ़ाया

कांग्रेस और सपा के बीच सीट बंटवारा आसान नहीं था। कांग्रेस जो सीटें चाहती थी, अखिलेश उसे देने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से दूरी बनाने और वाराणसी सीट से उम्मीदवार की घोषणा कर कांग्रेस पर दबाव बना दिया। कांग्रेस यदि अपने रुख नरम नहीं करती तो यहां भी बंगाल और पंजाब जैसा हाल हो सकता था। इससे देश भर में यह संदेश जाता कि 'इंडी' गठबंधन के साथी उससे एक-एक कर अलग हो रहे हैं। सीट बंटवारे पर कहीं तो सहमति बनानी जरूरी थी। यही नहीं अकेले चुनाव लड़ने पर वोटों में बिखराव का खतरा अलग से था।

आखिर में कांग्रेस ने सीटों की जिद छोड़ी

वैसे भी यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर 7 फीसदी रह गया है। उसे पता है कि उसे अपना जनाधार बढ़ाने के लिए उसे सपा जैसे क्षेत्रीय दल के साथ की जरूरत है। यह बात सपा भी जानती है कि कांग्रेस के लिए उसका साथ मजबूरी और जरूरत दोनों है। इसीलिए अखिलेश अपने इरादे पर अड़े रहे और एक-एक कर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारते रहे। सूत्रों का कहना है कि सीटों की जिद पर बात बिगड़ती देख कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने इस पर मंथन किया। मंथन के बाद कांग्रेस ने मुरादाबाद, खीरी की जिद छोड़ी और सपा कांग्रेस को सीतापुर सीट देने पर राजी हो गई। बुधवार को अखिलेश ने साफ कर दिया कि यूपी में गठबंधन होगा। उन्होंने कहा कि 'अंत भला तो सब भला'।

कांग्रेस को तेवर नरम करने पड़े

राजनीतिक पंडित मानते हैं कि राहुल की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' ने मुस्लिम वोटरों के बीच कांग्रेस के प्रति एक माहौल तैयार किया है। यूपी में करीब 25 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। यदि कांग्रेस अकेले मैदान में उतरती तो मुस्लिम वोटरों में बिखराव होता और इसका सीधा नुकसान सपा को होता। 2019 के चुनाव में कांग्रेस केवल रायबरेली सीट पर विजयी हुई। इस सीट पर सोनिया गांधी को जीत मिली। अमेठी में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने हरा दिया। अमेठी, कानपुर व फतेहपुर सीकरी में कांग्रेस दूसरे नंबर पर जबकि बाराबंकी, प्रयागराज, वाराणसी, झांसी, गाजियाबाद में सपा दूसरे नंबर पर थी। सपा और कांग्रेस दोनों को लगता है कि इस बार साथ लड़ने से इन सीटों पर जीत का परचम फहराया जा सकता है।

नगीना सीट पर आजाद ठोकेंगे ताल?

चर्चा यह भी है कि चुनाव में सपा दलित वोटों को साधने की कोशिश में है। वह नगीना सीट पर आजाद समाज पार्टी के मुकिया चंद्रशेखर आजाद को टिकट दे सकती है। इस सीट पर आजाद काफी दिनों से मेहनत कर रहे हैं। आजाद का इस इलाके के दलित समुदाय पर अच्छा-खासा असर है। उनका साथ आना कांग्रेस और सपा दोनों को फायदा पहुंचा सकता है।

यूपी में जब फेल हुआ गठबंधन

यूपी में विपक्षी गठबंधन का हश्र क्या हुआ है, उसे 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणामों में देखा जा सकता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा मिलकर भाजपा को रोकने की कोशिश की लेकिन इसमें वे असफल हुए। 2017 के विस चुनाव में भाजपा गठबंधन को 325 सीटों पर जीत मिली। भगवा पार्टी अकेले 312 सीटों पर विजयी हुई। इस चुनाव में सपा और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को मात्र 54 सीटें मिलीं। कांग्रेस सात सीटों और सपा 47 सीटों पर विजयी हुई। बहुजन समाज पार्टी के खाते में 19 सीटें आईं।

वोट शेयर बताते हैं दलों की हकीकत

2017 के दलों के मिले वोट शेयर की अगर बात करें तो भाजपा को करीब 40 प्रतिशत, बसपा को 22.23%, सपा को 21.82% और कांग्रेस को 6.25 फीसदी वोट मिले। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 255 सीटों पर विजयी हुई। इसके सहयोगी दल अपना दल (सोनेलाल) 12 सीटों और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभसाप) को छह सीटों पर जीत मिली। इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत 41.29 फीसदी था। सपा 32.06 वोट शेयर के साथ 111 सीटों, कांग्रेस 2.33 वोट शेयर के साथ 2 सीटों और बसपा 12.88 वोट शेयर के साथ एक सीट पर विजयी रही। 2019 के लोकसभा चुनाव की अगर बात करें तो एनडीए 80 सीटों पर चुनाव लड़ा और 64 सीटों पर उसे जीत मिली।

2019 में एनडीए का वोट शेयर 50.76% रहा

इस चुनाव में एनडीए का वोट शेयर 50.76 प्रतिशत रहा। भाजपा ने 78 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 62 सीटों पर उसके प्रत्याशी विजयी हुए। इस चुनाव में भाजपा को 49.56 फीसदी वोट मिला। दो सीटों पर अपना दल (सोनेलाल) को जीत मिली। बसपा और सपा ने 78 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इसमें से 15 सीटों (10 पर बसपा, 5 पर सपा) उन्हें जीत मिली। बसपा का वोट शेयर 19.26 और सपा का वोट शेयर 17.96 था। इस गठबंधन के सहयोगी रालोद तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसका खाता नहीं खुला। कांग्रेस 67 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी और उसे महज रायबरेली सीट पर जीत मिली। इस चुनाव में उसका वोट शेयर गिरकर 6.31 प्रतिशत पर पहुंच गया।

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